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Tuesday, 27 March 2018

कुछ बुंदे बरसात की

शांत सागर के हृदय से
उठती लहरें बदहवास सी

हवाओं मे भी नमी है
दिल के भीगे एहसास की

तपता मरूस्थल चाहता
कुछ बुंदे बरसात की

बादलों मे भी छुपी है
धीमी कोई आंच सी।

    कुसुम कोठारी ।

5 comments:

  1. वाह !!! बहुत खूब
    अप्रतीम भाव

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  2. कुछ बूँदें बरसात की
    वाह बेहद खूबसूरत रचना है दीदी जी

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  3. वाह वाह अति सुंदर मीता
    शीतल चंचल रजत रश्मि सा लेखन हिय को मेरे सर्साया
    आज प्रातः की शुभ बेला मैं कितना सुखद गीत गाया

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