माना उम्मीद पर जीने से हासिल कुछ नही लेकिन
पर ये भी क्या,कि दिल को जीने का सहारा भी न दें।
उजडने को उजडती है बसी बसाई बस्तियां
पर ये भी क्या के फकत एक आसियां भी ना दे।
खिल के मिलना ही है धूल मे जानिब नक्बत
पर ये क्या के खिलने को गुलिस्तां भी न दे।
माना डूबी है कस्तियां किनारों पे मगर
पर यूं भी क्या किसी को अश़्फाक भी न दे।
बरसता रहा आब ए चश्म रात भर बेजार
पर ये क्या उक़ूबत तिश्नगी मे पानी भी न दे।
मिलने को तो मिलती रहे दुआ ए हयात रौशन
पर ये क्या के अजुमन को आब दारी भी न दे ।
कुसुम कोठारी।
नक्बत=दुर्भाग्य,अश़्फाक =सहारा आब ए चश्म = आंसू,उक़ूबत =सजा,तिश्नगी =प्यास
पर ये भी क्या,कि दिल को जीने का सहारा भी न दें।
उजडने को उजडती है बसी बसाई बस्तियां
पर ये भी क्या के फकत एक आसियां भी ना दे।
खिल के मिलना ही है धूल मे जानिब नक्बत
पर ये क्या के खिलने को गुलिस्तां भी न दे।
माना डूबी है कस्तियां किनारों पे मगर
पर यूं भी क्या किसी को अश़्फाक भी न दे।
बरसता रहा आब ए चश्म रात भर बेजार
पर ये क्या उक़ूबत तिश्नगी मे पानी भी न दे।
मिलने को तो मिलती रहे दुआ ए हयात रौशन
पर ये क्या के अजुमन को आब दारी भी न दे ।
कुसुम कोठारी।
नक्बत=दुर्भाग्य,अश़्फाक =सहारा आब ए चश्म = आंसू,उक़ूबत =सजा,तिश्नगी =प्यास
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteसत्य का हूबहू चित्रण किया आपने
बहुत बहुत आभार सखी।
Deleteजीने को कुछ आशा तो होनी चाहिए
वाह ... नए अन्दाज़ के शेर ...
ReplyDeleteहर शेर कुछ नया बयान लिए ... लाजवाब ...
सादर आभार आपकी सक्रिय प्रतिक्रिया लेखन को आयाम देती सी सदा अनुग्रह बनाये रखें।
Deleteबहुत खूब मीता लाजवाब 👏👏👏👏👏
ReplyDeleteउम्मीद पे दुनिया कायम है
ना उम्मीद कहाँ जीते है
मरने से पहले मर जाते
पस्त हौसले कब उड़ते है ।
वाह बहुत सुन्दर
Deleteउम्मीद पे दुनियां कायम है
ReplyDeleteना उम्मीद कहाँ जीते है
मरते है मरने से पहले
पस्त हौसले कब उड़ान भरते है ।
सस्नेह आभार मीता।
ReplyDeleteरचना को समर्थन करती सुंदर प्रतिक्रिया।
शुभ दिवस ।
उम्दा अशआर
ReplyDeleteसादर आभार ।
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