अम्बर प्रांगण।
अम्बर प्रागंण में कुछ झिलमिलाते फूल खिले,
हीर कणी से चमक रहे, क्या रत्नों के लिबास पहने !
चाँद के साथ करते अठखेलियाँ हो मस्त कुछ ऐसे ,
कुछ अविस्मृत चित्र ,ज्यों चक्षु पटल पर दौड़ चले ।
मां का तारो जड़ी चुनर,छोटे घुंघट से झांकता मुखड़ा ,
आकाश पर जड़े तारों की मेखला ओढे चंद्र टुकड़ा ।
अम्बर प्रागंण में......
कितने प्यारे, कितने न्यारे तुम निशा की सन्तति हो ,
सूरज से डरते हो कितना, आते ही छुप जाते हो।
क्या चांद तुम्हारा मामा लगता, या है कोई और ही नाता,
अपने ही जैसा रजत रेशमी रूप तुम में क्यों भर देता ।
अम्बर प्रागंण में... ।
कुछ नही कहते चुप रहते, कभी छोड़ते घर अपना ,
दिन में कंहा छुपे रहते ,क्या देखते सोकर सपना ,
कितने प्यारे कितने न्यारे,क्यों कभी नही बडे़ होते,
काश हम भी कभी न बढ़ते ,सदा सदा बच्चे रहते ।
अम्बर प्रागंण में ...
कुसुम कोठारी ।
बहुत सुंदर रचना... वाह्ह्ह्ह्
ReplyDeleteसादर आभार।
Deleteक्या बात मीता 👏👏👏👏
ReplyDeleteमणिकर्णिका से चमक रहे
शब्द शब्द एहसास
एक पढू तो दूजा खींचे
पहले क्या पढू मैं आज
शब्द शब्द ग्रंथ सरीखे
मन मे भ्रम फैलाये
सुंदर शब्दो का अवगुंठन
सरस सहज से भाये ।
वाह मीता बहुत सुंदर प्रतिक्रिया।
Deleteमेरी रचना को इतना मान दिया मै भाव विभोर हूं हृदय तल से स्नेह आभार।
वाह वाह 👏 तारों की बारात लिए आई सुंदर रचना.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteखूबसूरत शब्दों का चयन
लाजवाब
सादर आभार प्रिय सखियों।
ReplyDeleteकुछ नही कहते चुप रहते, कभी छोड़ते घर अपना
ReplyDeleteदिन में कंहा छुपे रहते क्या देखते
सोकर सपना
कितने प्यारे कितने न्यारे क्यों कभी नही बडे़ होते
काश हम भी कभी न बढ़ते ,सदा सदा बच्चे रहते
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना
कुछ नही कहते चुप रहते, कभी छोड़ते घर अपना
ReplyDeleteदिन में कंहा छुपे रहते ,क्या देखते सोकर सपना ,
कितने प्यारे कितने न्यारे,क्यों कभी नही बडे़ होते,
काश हम भी कभी न बढ़ते ,सदा सदा बच्चे रहते
सचमुच बचपन ही जीवन का सबसे खूबसूरत हिस्सा है...अम्बर प्रांगण के ये खूबसूरत तारे बचपन में ही तो सुनहरे सपने दिखाते हैं...
बहुत ही खूबसूरत लाजवाब रचना
वाह!!!
कुसुम दी,बच्चे बने रहने की चाह को कविता के माध्यम से बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया हैं आपने।
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