Tuesday, 6 March 2018

अम्बर प्रांगण

अम्बर प्रांगण।

अम्बर प्रागंण में कुछ झिलमिलाते फूल खिले,
हीर कणी से चमक रहे, क्या रत्नों के लिबास पहने !

चाँद के साथ करते अठखेलियाँ हो मस्त कुछ ऐसे ,
कुछ अविस्मृत चित्र ,ज्यों चक्षु पटल पर दौड़ चले ।
मां का तारो जड़ी चुनर,छोटे घुंघट से झांकता मुखड़ा ,
आकाश पर जड़े तारों की मेखला ओढे चंद्र टुकड़ा ।
अम्बर प्रागंण में...... 

कितने प्यारे, कितने न्यारे तुम निशा की सन्तति हो ,
सूरज से डरते हो कितना, आते ही छुप जाते हो।
क्या चांद तुम्हारा मामा लगता, या है कोई और ही नाता,
अपने ही  जैसा रजत रेशमी रूप तुम में क्यों भर देता ।
अम्बर प्रागंण में... ।

कुछ नही कहते चुप रहते, कभी छोड़ते घर अपना ,
दिन में कंहा छुपे रहते ,क्या देखते सोकर सपना ,
कितने प्यारे कितने न्यारे,क्यों कभी नही बडे़ होते,
काश हम भी कभी न बढ़ते ,सदा सदा बच्चे रहते ।
अम्बर प्रागंण में ...
                  कुसुम कोठारी ।

10 comments:

  1. बहुत सुंदर रचना... वाह्ह्ह्ह्

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  2. क्या बात मीता 👏👏👏👏
    मणिकर्णिका से चमक रहे
    शब्द शब्द एहसास
    एक पढू तो दूजा खींचे
    पहले क्या पढू मैं आज
    शब्द शब्द ग्रंथ सरीखे
    मन मे भ्रम फैलाये
    सुंदर शब्दो का अवगुंठन
    सरस सहज से भाये ।

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    1. वाह मीता बहुत सुंदर प्रतिक्रिया।
      मेरी रचना को इतना मान दिया मै भाव विभोर हूं हृदय तल से स्नेह आभार।

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  3. वाह वाह 👏 तारों की बारात लिए आई सुंदर रचना.

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  4. बहुत सुंदर रचना
    खूबसूरत शब्दों का चयन
    लाजवाब

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  5. सादर आभार प्रिय सखियों।

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  6. कुछ नही कहते चुप रहते, कभी छोड़ते घर अपना
    दिन में कंहा छुपे रहते क्या देखते
    सोकर सपना
    कितने प्यारे कितने न्यारे क्यों कभी नही बडे़ होते
    काश हम भी कभी न बढ़ते ,सदा सदा बच्चे रहते
    बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना

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  7. कुछ नही कहते चुप रहते, कभी छोड़ते घर अपना
    दिन में कंहा छुपे रहते ,क्या देखते सोकर सपना ,
    कितने प्यारे कितने न्यारे,क्यों कभी नही बडे़ होते,
    काश हम भी कभी न बढ़ते ,सदा सदा बच्चे रहते
    सचमुच बचपन ही जीवन का सबसे खूबसूरत हिस्सा है...अम्बर प्रांगण के ये खूबसूरत तारे बचपन में ही तो सुनहरे सपने दिखाते हैं...
    बहुत ही खूबसूरत लाजवाब रचना
    वाह!!!

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  8. कुसुम दी,बच्चे बने रहने की चाह को कविता के माध्यम से बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया हैं आपने।

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