Sunday, 4 March 2018


 निशिगंधा की भीनी
मदहोश करती सौरभ
चांदनी का रेशमी
उजला वसन
आल्हादित करता
मायावी सा मौसम
फिर झील का अरविंद
उदास गमगीन क्यों
सूरज की चाहत
प्राणो का आस्वादन है
रात कितनी भी
मनभावन हो
कमल को सदा चाहत
भास्कर की लालिमा है
जैसे चांद को चकोर
तरसता हर पल
नीरज भी प्यासा बिन भानु
पानी के रह अंदर,
ये अपनी अपनी
प्यास है  देखो
बिन शशि रात भी
उदास है देखो।

  कुसुम कोठरी

10 comments:

  1. बिटिया बहुत बहुत सुंदर ऐक मदद चाहिये आप कवि श्री ज्ञान भारिल्ल के बारे मे जानती है क्या ?

    ReplyDelete
  2. साॅरी देर से देखा, नमस्कार काकासा । मै ज्यादा नही बस ईतना ही पता है कि राजस्थान साहित्य अकादमी ने उन्हें विशिष्ट साहित्यकार का सम्मान 72-73 मे दीया था और उन्होंने काफी उत्कृष्ट साहित्य सृजन किया।

    ReplyDelete
    Replies
    1. ये तो मैने भी पता लगा लिया और उनकी प्रमुख कृतियो का उल्लेख भी डॉक्टर मयंक जी शर्मा के शोध पत्र मे आया है ये सारी जानकारी अमित जी मौलिक के वाटसप पर भेजी है ।। आप तो नम्बर देती नही वर्णा सीधे आपको भेज देता ताकी उस से आगे खोजने मे साहयता मिलती

      Delete
  3. वाह्ह्ह...वाह्ह...दी हमेशा की भाँति...बेहद सुंदर रचना👌👌👌
    शब्दों को चुन-चुनकर माला पिरोये है आपने।

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर मनभावन रचना....
    कमल की चाहत भास्कर... चकोर को चाँद....
    शशि बिन रात उदास...
    वाह!!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुधा जी आपकी ब्लॉग पर प्रतिक्रिया मन लुभा गई ।

      Delete
  5. वाह !!!बहुत खूबसूरत रचना.... सुंदर

    ReplyDelete
  6. वाह!!बहुत खूबसूरत रचना ।

    ReplyDelete