ऋतु परिक्रमा
गर्मी का मौसम आता है
तपती दोपहरी लाता है
सन्नाटे शोर मचाते हैं
गर्म थपेड़े देह जलाते हैं
तन बदन कुम्हलाते हैं
और फूल सभी मुरझाते हैं।
जब बरखा की रूत आती है
हरियाली साथ मे लाती है
जब काली घटा छा जाती है
कोयल मीठे गीत सुनाती है
पुरवाई मल्हार गाती है
विरहित हृदय अकुलाते हैं।
जब सर्दी का मौसम आता है
धुप सुहानी प्यारी लगती है
दोपहरी आंगन मुस्काती है
शाम जल्दी दीप जलाती है
रातें लम्बी दिन छोटे हो जाते हैं
सोंधे पकवान जी ललचाते है।
बसंत मधुमास बन आता है
धरा इंद्रधनुषी रंग जाती है
मयूर सुंदर नृत्य दिखाते है
तितली भंवरों की ऋतु आती है
पपीहरा पी की राग सुनाता है
नव कोंपल फूल खिल जाते है।
ऋतु परिक्रमा.....
कुसुम कोठारी।
वाह !!!बहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteस्नेह आभार सखी ।
Deleteक्या बात है दी...लाज़वाब..चिंतन..सुंदर रचना है👌👌
ReplyDeleteस्नेह आभार श्वेता ।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १२ मार्च २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
जी आभार ।
Deleteरितु परिक्रमा....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
वाह!!!
सादर आभार सुधा जी ।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteजी बहुत सा आभार ।
Deleteवाह!!लाजवाब।
ReplyDeleteढेर सारा आभार शुभा जी।
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