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Saturday, 10 March 2018

ऋतु परिक्रमा











ऋतु परिक्रमा

गर्मी का मौसम आता है
तपती दोपहरी लाता है
सन्नाटे शोर मचाते हैं
गर्म थपेड़े देह जलाते हैं
तन बदन कुम्हलाते हैं
और फूल सभी मुरझाते हैं।

जब बरखा की रूत आती है
हरियाली साथ मे लाती है
जब काली घटा छा जाती है
कोयल मीठे गीत सुनाती है
पुरवाई मल्हार गाती है
विरहित  हृदय अकुलाते हैं।

जब सर्दी का मौसम आता है
धुप सुहानी प्यारी लगती है
दोपहरी आंगन  मुस्काती है
शाम जल्दी दीप जलाती  है
रातें लम्बी दिन छोटे हो जाते हैं
सोंधे पकवान जी ललचाते है।

बसंत मधुमास बन आता है
धरा इंद्रधनुषी रंग जाती है
मयूर सुंदर नृत्य दिखाते है
तितली भंवरों की ऋतु आती है
पपीहरा पी की राग सुनाता है
नव कोंपल फूल खिल जाते है।

ऋतु  परिक्रमा.....
           कुसुम कोठारी।

12 comments:

  1. वाह !!!बहुत खूबसूरत रचना

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  2. क्या बात है दी...लाज़वाब..चिंतन..सुंदर रचना है👌👌

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १२ मार्च २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. रितु परिक्रमा....
    बहुत ही सुन्दर
    वाह!!!

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  5. वाह!!लाजवाब।

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    Replies
    1. ढेर सारा आभार शुभा जी।

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