पादप पल्लव का आसन
कुसमित सुमनों से सजाऐ
आस लगाए बैठी राधिका
मन का उपवन महकाऐ
अब तक ना आऐ बनमाली
मन का मयूर अकुलाऐ
धीर पडत नही पल छिन
मन का कमल कुम्हलाऐ
कैसे कोई संदशो भेजूं
मन पाखी बन उड जाऐ
ललित कलियाँ सजादूं द्वारे
श्याम सुंदर जब पुर आऐ ।
कुसुम कोठरी।
कान्हा के प्रति आप की अस्था आप की रचनाओं से झलकती बेहद शानदार रचना
ReplyDeleteवाह वाह .... मीता
ReplyDeleteअति विरह की मारी राधिका
फूलन सी कुमल्हाये
क्यो न आये श्याम पुरन मैं
लता बृंद सरसाये ।
वाह मीता, बहुत सुंदर
ReplyDeleteआकुलता के भाव संजोए शब्द-शब्द बतियाए
सहज भाव से राधिके के भाव लेखनी तुम्हरी कह जाए।
आप सभी को सस्नेह आभार ।
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