Monday, 12 March 2018

श्याम सुंदर पुर आये

               
पादप पल्लव का आसन
कुसमित सुमनों से सजाऐ

आस लगाए बैठी राधिका
मन का उपवन महकाऐ

अब तक ना आऐ बनमाली
मन का मयूर अकुलाऐ

धीर पडत नही पल छिन
मन का कमल कुम्हलाऐ

कैसे कोई संदशो भेजूं
मन पाखी बन उड जाऐ

ललित कलियाँ सजादूं द्वारे
श्याम सुंदर जब पुर आऐ ।

            कुसुम कोठरी।

4 comments:

  1. कान्हा के प्रति आप की अस्था आप की रचनाओं से झलकती बेहद शानदार रचना

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  2. वाह वाह .... मीता
    अति विरह की मारी राधिका
    फूलन सी कुमल्हाये
    क्यो न आये श्याम पुरन मैं
    लता बृंद सरसाये ।

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  3. वाह मीता, बहुत सुंदर
    आकुलता के भाव संजोए शब्द-शब्द बतियाए
    सहज भाव से राधिके के भाव लेखनी तुम्हरी कह जाए।

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  4. आप सभी को सस्नेह आभार ।

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