. चांद कटोरा
चंचल किरणें शशी की
झांक रही थी पत्तियों से
उतर आई अब मेरे आंगन
जी करता इनसे अंजलीे भर लूं
या फिर थाली भर भर रख लूं
सजाऊं घर अपना इन रजत रश्मियों से
ये विश्व सजाती मन को भाती
धरा पे बिखरी -बिखरी जाती
खेतों, खलियानो ,पनघट , राहें ,
दोराहे , छत , छज्जै ,पेड़, पोधे
वन उपवन डोलती फिरती
ये चपल चंद्रिकाऐं बस अंधेरों से खेलती
पूर्व मे लाली फैलने से पहले
लौट जाती अपने चंदा के पास
सिमटती एक कटोरे मे चांद कटोरे मे ।
कुसुम कोठारी ।
चंचल किरणें शशी की
झांक रही थी पत्तियों से
उतर आई अब मेरे आंगन
जी करता इनसे अंजलीे भर लूं
या फिर थाली भर भर रख लूं
सजाऊं घर अपना इन रजत रश्मियों से
ये विश्व सजाती मन को भाती
धरा पे बिखरी -बिखरी जाती
खेतों, खलियानो ,पनघट , राहें ,
दोराहे , छत , छज्जै ,पेड़, पोधे
वन उपवन डोलती फिरती
ये चपल चंद्रिकाऐं बस अंधेरों से खेलती
पूर्व मे लाली फैलने से पहले
लौट जाती अपने चंदा के पास
सिमटती एक कटोरे मे चांद कटोरे मे ।
कुसुम कोठारी ।
वाह वाह!! अद्भुत
ReplyDeleteचांद कटोरे में भरी चन्द्रिकायें सजा दिया है कोना कोना
बस गई मन के आंगन में बन कर सुखद सपन सलोना
कुसुम जी यूंही अपनी काव्यकिरणें चहुँओर फैलाती रहें
पूजा जी आपकी अभिव्यक्ति सिर्फ सराहना नही एक काव्य है मनमोहक, बहुत सुंदर पंक्तियाँ आपकी, और ब्लाग पर आपकी प्रतिक्रिया से मन अभिभूत हुवा।
Deleteढेर सा आभार
सुन्दर भाव सौन्दर्य और अभिराम बिम्ब लालित्य!!!
ReplyDeleteबहुत सा आभार विश्व मोहन जी आप जैसे प्रतिष्ठित प्रबुद्ध रचनाकारों से सराहना पाना रचना की सार्थकता है।
Deleteमन अभिभूत हुवा
शानदार चाँद कटोरा....
ReplyDeleteवाह!!!!
चपल चन्द्रिकाओं का आँगन में उतरना....
एक खूबसूरत ख्याल...!!
सस्नेह आभार।
Deleteबहुत सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteस्नेह आभार नीतू जी
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