नव सूर्योदय नव गति बोध
दूर गगन ने उषा का
घूंघट पट खोला
स्वर्णिम बाल पतंग
मुदित मन डोला
किरणों ने बांहे फैलाई
ले अंगड़ाई
छन-छन सोई पायल
बोली, मनभाई
अलसाई सी सुबह ने
आँखे खोली
खग अब उठ जाओ
प्यार से बोली
मधुर झीनी झीनी
बहे बयार मधु रस सी
फूलों ने निज अधर
खोले धीरे धीरे
भ्रमर गूंजार चहुँ और
सरस गूंजारित
उठ चला रात भर का
सोया कलरव
सभी चले करने
पुरीत निज कारज
आराम के बाद
ज्यों चल देता राहगीर
अविचल अविराम
पाने मंजिल फिर
यूंही सदा आती है सुबहो
फिर ढल जाने को
यूं ही सदा ढलता सूर्य
नित नई गति पाने को।
कुसुम कोठारी।
दूर गगन ने उषा का
घूंघट पट खोला
स्वर्णिम बाल पतंग
मुदित मन डोला
किरणों ने बांहे फैलाई
ले अंगड़ाई
छन-छन सोई पायल
बोली, मनभाई
अलसाई सी सुबह ने
आँखे खोली
खग अब उठ जाओ
प्यार से बोली
मधुर झीनी झीनी
बहे बयार मधु रस सी
फूलों ने निज अधर
खोले धीरे धीरे
भ्रमर गूंजार चहुँ और
सरस गूंजारित
उठ चला रात भर का
सोया कलरव
सभी चले करने
पुरीत निज कारज
आराम के बाद
ज्यों चल देता राहगीर
अविचल अविराम
पाने मंजिल फिर
यूंही सदा आती है सुबहो
फिर ढल जाने को
यूं ही सदा ढलता सूर्य
नित नई गति पाने को।
कुसुम कोठारी।
ज्यों चल देता राहगीर
ReplyDeleteअविचल अविराम
पाने मंजिल फिर
यूंही सदा आती है सुबहो
फिर ढल जाने को बहुत ही बेहतरीन रचना सखी
सस्नेह आभार सखी।
Deleteआपका स्नेह सदा उत्साह वर्धन करता है।
वाह! बहुत खुबसूरत रचना!!!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय विश्व मोहन जी ।
Deleteआपकी प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
बहुत ही सुन्दर 👌
ReplyDeleteसस्नेह आभार प्रिय सखी ।
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