दूर कहीं शहनाई बजी
आहा! आज फिर किसी के
सपने रंग भरने लगे
आज फिर एक नवेली
नया संसार बसाने चली
मां ने वर्ण माला सिखाई
तब सोचा भी न होगा
चली जायेगी
जीवन के नये अर्थ सीखने
यूं अकेली
किसी अजनबी के साथ
जो हाथ न छोडती थी कभी
गिरने के डर से
वही हाथ छोड किसी
और का हाथ थाम चल पड़ी
जिसका पूरा आसमान
मां का आंचल था
वो निकल पड़ी
विशाल आसमान में
उडने, अपने पंख फैला
जिसकी दुनिया थी
बस मां के आस पास
वो चली आज एक
नई दुनिया बसाने
शहनाई बजी फिर
लो एक डोली उठी फिर।
कुसुम कोठारी।
आहा! आज फिर किसी के
सपने रंग भरने लगे
आज फिर एक नवेली
नया संसार बसाने चली
मां ने वर्ण माला सिखाई
तब सोचा भी न होगा
चली जायेगी
जीवन के नये अर्थ सीखने
यूं अकेली
किसी अजनबी के साथ
जो हाथ न छोडती थी कभी
गिरने के डर से
वही हाथ छोड किसी
और का हाथ थाम चल पड़ी
जिसका पूरा आसमान
मां का आंचल था
वो निकल पड़ी
विशाल आसमान में
उडने, अपने पंख फैला
जिसकी दुनिया थी
बस मां के आस पास
वो चली आज एक
नई दुनिया बसाने
शहनाई बजी फिर
लो एक डोली उठी फिर।
कुसुम कोठारी।
हदयस्पर्शी...मार्मिक रचना
ReplyDeleteलो एक डोली उठी फिर
👌👌👌👌
सादर आभार रविंद्र जी।
Deleteबहुत ही सुन्दर.. ..मार्मिक रचना 👌👌सखी !!
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी ।
Deleteलाजवाब रचना सखी।
ReplyDeleteआपको पसंद आई सखी सस्नेह आभार ।
Deleteनारी जीवन की अजीब यात्रा का बहुत सुंदर वर्णन, कुसुम दी।
ReplyDeleteआपकी सटीक व्याख्या से रचना को प्रवाह मिला ज्योति बहन ।
Deleteसस्नेह आभार ।
सस्नेह आभार प्रिय सखी यूं ही उत्साह बढाती रहें।
ReplyDeleteखूबसूरत, मर्मस्पर्शी रचना मीता
ReplyDeleteआभार मीता ढेर सा। ब्लॉग पर देख बहुत खुशी हुई ।
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 10 दिसम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी सादर आभार ।
Deleteबहुत खूबसूरत, हृदयस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteजिसका पूरा आसमान
मां का आंचल था
वो निकल पड़ी
विशाल आसमान में
वाह!!!
सुधा जी आपकी सराहना सदा मेरा मार्ग दर्शन करती है सदा स्नेह बनाये रखें ।
Deleteसस्नेह आभार।