सर्द का दर्द
सर्द हवा की थाप ,
बंद होते दरवाजे खिडकियां
नर्म गद्दों में रजाई से लिपटा तन
और बार बार होठों से फिसलते शब्द
आज कितनी ठंड है!
कभी ख्याल आया उनका
जिन के पास रजाई तो दूर
हड्डियों पर मांस भी नही ,
सर पर छत नही
औऱ आशा कितनी बड़ी
कल धूप निकलेगी
और ठंड कम हो जायेगी
अपनी भूख,बेबसी,
औऱ कल तक अस्तित्व
बचा लेने की लड़ाई
कुछ रद्दी चुन के अलाव बनायें
दो कार्य एक साथ
आज थोड़ा आटा हो तो
रोटी और ठंड दोनों सेक लें ।
कुसुम कोठरी ।
सर्द हवा की थाप ,
बंद होते दरवाजे खिडकियां
नर्म गद्दों में रजाई से लिपटा तन
और बार बार होठों से फिसलते शब्द
आज कितनी ठंड है!
कभी ख्याल आया उनका
जिन के पास रजाई तो दूर
हड्डियों पर मांस भी नही ,
सर पर छत नही
औऱ आशा कितनी बड़ी
कल धूप निकलेगी
और ठंड कम हो जायेगी
अपनी भूख,बेबसी,
औऱ कल तक अस्तित्व
बचा लेने की लड़ाई
कुछ रद्दी चुन के अलाव बनायें
दो कार्य एक साथ
आज थोड़ा आटा हो तो
रोटी और ठंड दोनों सेक लें ।
कुसुम कोठरी ।
बेहद हृदयस्पर्शी रचना सखी
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह भरा आभार सखी ।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार ।
Deleteमर्म स्पर्शी
ReplyDeleteसस्नेह आभार मीता ।
Deleteसुन्दर व मर्म स्पर्शी रचना सखी
ReplyDeleteसादर
प्यार भरा आभार सखी।
Deleteसस्नेह ।
बहुत ही सुन्दर रचना कुसुम दी
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह और आभार बहना ।
Deleteदिल को छूती बहुत भावमयी प्रस्तुति..
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय।
Deleteउत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया आपकी।
भावपूर्ण ओर सुंदर सृजन
ReplyDeleteबहुत सा आभार आदरणीय, उत्साह वर्धन के लिये।
Deleteसादर।
बहुत सा आभार लोकेश जी ।
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