लो लहराके चली हवा
फूलों की छुवन साथ लिये
था थोड़ा बसंती सौरभ
कुछ अल्हड़ता लिये
मतंग मतवाली हवा।
लो लहराके चली हवा
सरगम दे मुकुल होठों को
तितलियों का बांकपन
किरणों के रेशमी ताने
ले मधुर गान पंछियों का।
लो लहराके चली हवा
भीना राग छेड़ तरंगिणी में
अमलतास को दे मृदुल छुवन
सांझ की लाली पर डोरे डाल
जा बैठी पर्वतों के पार।
लो लहराके चली हवा
थाम के ऊंगली मंयक की
आ बैठी मुंडेर पर
फिर बह चली आमोद में
सागर की लहरों पर नाचती।
लो लहराके चली हवा
चंदा खोया आधी रात में
डोलती तारों भरे आकाश में
तम की कालिमा हटी,
उषा की चूनर लहराई।
लो लहराके चली हवा
मार्तण्ड के घोड़े पर हो सवार
झरनों पर फिसलती
हिम का करती श्रृंगार
मानस में कलरव भरती।
लो लहराके चली हवा ।
कुसुम कोठारी
फूलों की छुवन साथ लिये
था थोड़ा बसंती सौरभ
कुछ अल्हड़ता लिये
मतंग मतवाली हवा।
लो लहराके चली हवा
सरगम दे मुकुल होठों को
तितलियों का बांकपन
किरणों के रेशमी ताने
ले मधुर गान पंछियों का।
लो लहराके चली हवा
भीना राग छेड़ तरंगिणी में
अमलतास को दे मृदुल छुवन
सांझ की लाली पर डोरे डाल
जा बैठी पर्वतों के पार।
लो लहराके चली हवा
थाम के ऊंगली मंयक की
आ बैठी मुंडेर पर
फिर बह चली आमोद में
सागर की लहरों पर नाचती।
लो लहराके चली हवा
चंदा खोया आधी रात में
डोलती तारों भरे आकाश में
तम की कालिमा हटी,
उषा की चूनर लहराई।
लो लहराके चली हवा
मार्तण्ड के घोड़े पर हो सवार
झरनों पर फिसलती
हिम का करती श्रृंगार
मानस में कलरव भरती।
लो लहराके चली हवा ।
कुसुम कोठारी
मार्तण्ड के घोड़े पर हो सवार
ReplyDeleteझरनों पर फिसलती
हिम का करती श्रृंगार
अप्रतिम सृजन कुसुम जी ! प्रकृति का अनुपम वर्णन ।
बहुत बहुत आभार मीना जी सच आप की सराहना से रचना मुखरित हुई
Deleteसस्नेह।
नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँँ कुसुम जी ।
Deleteआपको भी पुरे परिवार सहित नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें ।सर्व मंगलमय हो
Deleteहवाओ की ये छुअन... बड़ी प्यारी लगी कुसुम जी, सादर स्नेह...
ReplyDeleteऔर हमें आपका स्नेह अहसास छू गया कामिनी जी। बहुत सा आभार।
Deleteसस्नेह ।
जीवन्त
ReplyDeleteबहुत खूब आदरणीया
जी बहुत बहुत आभार आपका रविंद्र जी रचना सार्थक हुई ।
Deleteबहुत ही मन भावन सुन्दर रचना कुसुम जी 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत सा आभार सखी।
Delete
ReplyDeleteचंदा खोया आधी रात में
डोलती तारों भरे आकाश में
तम की कालिमा हटी,
उषा की चूनर लहराई।
कुसुम दी इस
सुंदर चना के लिये प्रणाम
सस्नेह आभार शशि भाई आपकी सराहना उत्साह का टानिक है।
Deleteसस्नेह।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ३१ दिसंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार ।
Deleteबहुत सुंदर प्राकृतिक सौंदर्य का मनभावन चित्र खींचा है आपने। नववर्ष मंगलमय हो।
ReplyDeleteबहुत ही स्नेह सिक्त आभार सुधा जी आपकी मनभावन प्रतिक्रिया से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteसस्नेह
वाह!!कुसुम जी ,बहुत सुंदर अलंकारिक भाषा ,अलौकिक वर्णन !!
ReplyDeleteबहुत सा प्यार भरा आभार शुभा जी उत्साह वर्धन के लिये ।
Deleteसस्नेह ।
थाम के ऊंगली मंयक की
ReplyDeleteआ बैठी मुंडेर पर
फिर बह चली आमोद में
सागर की लहरों पर नाचती।
वाह!!!!
बहुत ही प्यारी मनभावनी सी छुवन...
लाजी रचना...।
बहुत ही प्यारी सी आपकी प्रतिक्रिया सुधा जी मन बाग बाग हुवा ढेर सा स्नेह
ReplyDeleteमार्तण्ड के घोड़े पर हो सवार
ReplyDeleteझरनों पर फिसलती
हिम का करती श्रृंगार
मानस में कलरव भरती।
लहराके चली हवा ।
बहुत ही प्यारा , मनभावन सृजन प्रिय कुसुम बहन | इतनी सुघड़ताऔर सूक्ष्मता से प्रकृति के अवलोकन की अद्भुत क्षमता माँ सरस्वती का अनुपम वरदान है | आज बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर लिख पा रही हूँ | एक हफ्ते से ब्लॉग से अनुपस्थित भी रही हालाँकि आपके ब्लॉग पर आती रहती हूँ | सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई बहना | साथ में नववर्ष की बेला पर आपको सपरिवार हार्दिक बधाई और शुभकामनायें | नववर्ष आप और आपके परिवार के लिए अत्यंत सुखद और मंगलकारी हो यही कामना है |सस्नेह --
नव वर्ष पर इतने सुरम्य शब्दों के साथ इतनी प्यार की सौगातें लें मेरे ब्लॉग पर आप का रेनू बहन अंतर हृदय से स्वागत है।
ReplyDeleteआपके हर शब्द से प्यार स्नेह छलक रहा है, सच मैं नही बता सकती कितनी खुशी हुई आपके स्नेह वचनो से ।
आप को भी रेनू बहन समस्त परिवार सहित नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें। ये नव वर्ष ही क्या सदा सर्वदा आपके जीवन में खुशियों का साम्राज्य रहे ।
सस्नेह रेनू बहन
बहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया इन शब्दों में ...
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका प्रोत्साहित करती सराहना का ।
Deleteसादर