रो रो के सुनाते रहोगे दास्ताँ ए गम
भला कोई कब तक सुनेगा
देते रहोगे दुहाई उजड़ी जिंदगी की
भला कोई कब तक सुनेगा
आशियाना तुम्हारा ही तो बिखरा ना होगा
भला कोई कब तक सुनेगा
गम से कोई जुदा कहां जमाने में
भला कोई कब तक सुनेगा
अदम है आदमी बिन अत़्फ के
भला कोई कब तक सुनेगा
अफ़सुर्दा रहते हो अजा़ब लिये
भला कोई कब तक सुनेगा
आब ए आइना ही धुंधला इल्लत किसे
भला कोई कब तक सुनेगा
गम़ख्वार कौन गैहान में आकिल है चुप्पी
भला कोई कब तक सुनेगा ।
कुसुम कोठारी।।
अदम =अस्तित्व हीन, अत़्फ =दया
अफ़सुर्दा =उदास ,इल्लत =दोष
गैहान=जमाना, आकिल =बुद्धिमानी
भला कोई कब तक सुनेगा
देते रहोगे दुहाई उजड़ी जिंदगी की
भला कोई कब तक सुनेगा
आशियाना तुम्हारा ही तो बिखरा ना होगा
भला कोई कब तक सुनेगा
गम से कोई जुदा कहां जमाने में
भला कोई कब तक सुनेगा
अदम है आदमी बिन अत़्फ के
भला कोई कब तक सुनेगा
अफ़सुर्दा रहते हो अजा़ब लिये
भला कोई कब तक सुनेगा
आब ए आइना ही धुंधला इल्लत किसे
भला कोई कब तक सुनेगा
गम़ख्वार कौन गैहान में आकिल है चुप्पी
भला कोई कब तक सुनेगा ।
कुसुम कोठारी।।
अदम =अस्तित्व हीन, अत़्फ =दया
अफ़सुर्दा =उदास ,इल्लत =दोष
गैहान=जमाना, आकिल =बुद्धिमानी
ReplyDeleteआब ए आइना ही धुंधला इल्लत किसे
भला कोई कब तक सुनेगा
बेहद खूबसूरत....., उर्दू की नजाकत और शब्दों का हिन्दी रुपान्तरण...., बहुत खूब ।
मीना जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से और अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है।
Deleteसस्नेह आभार।
आशियाना तुम्हारा ही तो बिखरा ना होगा
ReplyDeleteभला कोई कब तक सुनेगा.....वाह !!बहुत ख़ूब सखी |
वाह सखी उत्साह वर्धन करती है आपकी प्रतिक्रिया सदा।
Deleteस्नेह आभार सखी।
ये तो सच है कोई नहीं सुनता दर्द की दास्ताँ आज कल ...
ReplyDeleteसब रहते हैं अपने आप में ही मस्त ...
बहुत सी जीवन के लम्हे समेटे हैं आपने इस रचना में ... बहुत लाजवाब ...
जी भावों को समर्थन देती आपकी व्याख्यात्मक सराहना के लिये तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय नासवा जी।
Deleteमाना कि दर्द एक मीठे जख्म की तरह है ,
ReplyDeleteपरंतु अपने ही दर्द से सब बहुत गमगीन हैं
चलो कुछ गीत खुशी के गाएं ,क्यों हर पल अपने दर्द के किस्से सुनाए ।
सुंदर प्रस्तुति।
सुंदर भाव प्रदर्शित किये आपने रचना को आधार देते।
Deleteबहुत बहुत आभार ।
सादर।
आज के व्यस्त समय में किसी को किसी का दर्द सुनने का समय नहीं हैं। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, कुसुम दी।
ReplyDeleteस्नेह आभार ज्योति बहन रचना के भावों को समर्थन देने के लिये।
ReplyDeleteसस्नेह।
गम से कोई जुदा कहां जमाने में
ReplyDeleteभला कोई कब तक सुनेगा
वाह बहुत ही बेहतरीन रचना सखी
बहुत बहुत आभार सखी।
Deleteसस्नेह ।
आपकी वाह वाह पारितोष है रचना का।
ReplyDeleteस्नेह आभार भाई ।
लाजवाब रचना
ReplyDeleteबहुत उम्दा
बहुत बहुत आभार लोकेश जी आपका।
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