तीन क्षणिकाएँ
सिसकती मानवता
सिसकती मानवता
कराह रही है
हर ओर फैली धुंध कैसी है
बैठे हैं एक ज्वालामुखी पर
सब सहमें से डरे डरे
बस फटने की राह देख रहे
फिर सब समा जायेगा
एक धधकते लावे में ।
जिन डालियों पर
सजा करते थे झूले
कलरव था पंछियों का
वहाँ अब सन्नाटा है
झूल रहे हैं फंदे निर्लिप्त
कहलाते जो अन्न दाता
भूमि पुत्र भूमि को छोड़
शून्य के संग कर रहे समागम।
पद और कुर्सी का बोलबाला
नैतिकता का निकला दिवाला
अधोगमन की ना रही सीमा
नस्लीय असहिष्णुता में फेंक चिंगारी
सेकते स्वार्थ की रोटियाँ
देश की परवाह किसको
जैसे खुद रहेंगे अमर सदा
हे नराधमो मनुज हो या दनुज।
कुसुम कोठारी
सिसकती मानवता
सिसकती मानवता
कराह रही है
हर ओर फैली धुंध कैसी है
बैठे हैं एक ज्वालामुखी पर
सब सहमें से डरे डरे
बस फटने की राह देख रहे
फिर सब समा जायेगा
एक धधकते लावे में ।
जिन डालियों पर
सजा करते थे झूले
कलरव था पंछियों का
वहाँ अब सन्नाटा है
झूल रहे हैं फंदे निर्लिप्त
कहलाते जो अन्न दाता
भूमि पुत्र भूमि को छोड़
शून्य के संग कर रहे समागम।
पद और कुर्सी का बोलबाला
नैतिकता का निकला दिवाला
अधोगमन की ना रही सीमा
नस्लीय असहिष्णुता में फेंक चिंगारी
सेकते स्वार्थ की रोटियाँ
देश की परवाह किसको
जैसे खुद रहेंगे अमर सदा
हे नराधमो मनुज हो या दनुज।
कुसुम कोठारी
प्रिय कुसुम जी !!वैसे तो आप की रचनाओं का जबाब नहीं, बहुत ही सुन्दर होती है |
ReplyDeleteआज की क्षणिकाएँ "सिसकती मानवता "का जबाब नहीं, बहुत ही बेहतरीन 👌,
रचना के लिय आप को ढ़ेर सारी शुभकामनायें ,आप के उज्जवल भविष्य की कामना, सस्नेह !!
सादर
अपने मन के भावों को बस शब्द देती हूं सखी । आप प्रबुद्ध लोगों की सहमति मिलती है तो अच्छा लगता है
ReplyDeleteआपने बहुत मान दिया सखी इस मुकाम पर अभी खुद को नही पाती,, आपके स्नेह अतिरेक का आभार नही बस बहुत बहुत स्नेह।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ दिसंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
देर सबेर पर आऊंगी अवश्य।
Deleteप्रिय श्वेता सस्नेह आभार ।
पद और कुर्सी का बोलबाला
ReplyDeleteनैतिकता का निकला दिवाला बहुत ही बेहतरीन क्षणिकाएं सखी
सस्नेह आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है सखी।
Deleteपद और कुर्सी का बोलबाला
ReplyDeleteनैतिकता का निकला दिवाला
अधोगमन की ना रही सीमा
नस्लीय असहिष्णुता में फेंक चिंगारी
सेकते स्वार्थ की रोटियाँ
देश की परवाह किसको
जैसे खुद रहेंगे अमर सदा
हे नराधमो मनुज हो या दनुज।
बहुत ही लाजवाब क्षणिकाएं....
वाह!!!
सुधा जी सदा यूंही उत्साह बढाती रहें ।
Deleteबहुत सा आभार ।
सस्नेह ।
बहुत सुन्दर और मर्मस्पर्शी क्षणिकाएं ..
ReplyDeleteजी आदरणीय सादर आभार ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति सम्मानिय है मेरे लिये।। सदा प्रोत्साहित करते रहियेगा।
Deleteसादर।
सुंदर और भावपूर्ण क्षणिकाएं
ReplyDeleteब्लॉग पर आपको देख हर्ष हुवा आदरणीय ।
Deleteसादर आभार।
सदा उत्साह वर्धन करते रहें
सादर।
बहुत शानदार
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार लोकेश जी।
Deleteशानदार क्षणिकाएँँ मीता
ReplyDeleteढेर सा स्नेह आभार मीता।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२१ जनवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार श्वेता मै अभिभूत हूं ।
Deleteलाजवाब क्षणिकाएं..!!!कुसुम जी ।
ReplyDeleteकिसानों की दयनीय दशा की वजह अनदेखी व मानवता विहीन सियासत है.
ReplyDeleteउम्दा रचना.
स्वागत है ठीक हो न जाएँ