नीरव निशा का दामन थामे देखो मंयक
धरा को छूने आया अपनी रश्मियों से ।
मचल मचल लहरें सागर के दिल से
दौडती है किनारो से मिलने कसक लिये
छोड कुछ हलचल फिर समाती सागर में
हवाओं में फिर से कुछ नई रवानी है
दूर क्षितिज तक फैली निहारिकाऐं
मानो कुछ कह रही है पुकार के हमें
यूं ही बिखरा निशब्द मेला बहारो का
सर्द मौसम अब समझाने लगा नये अर्थ ।
नीरव निशा का दामन थाम देखो मंयक
धरा को छूने आया अपनी किरणों से ।
कुसुम कोठारी ।
धरा को छूने आया अपनी रश्मियों से ।
मचल मचल लहरें सागर के दिल से
दौडती है किनारो से मिलने कसक लिये
छोड कुछ हलचल फिर समाती सागर में
हवाओं में फिर से कुछ नई रवानी है
दूर क्षितिज तक फैली निहारिकाऐं
मानो कुछ कह रही है पुकार के हमें
यूं ही बिखरा निशब्द मेला बहारो का
सर्द मौसम अब समझाने लगा नये अर्थ ।
नीरव निशा का दामन थाम देखो मंयक
धरा को छूने आया अपनी किरणों से ।
कुसुम कोठारी ।
मचल मचल लहरें सागर के दिल से
ReplyDeleteदौडती है किनारो से मिलने कसक लिये
बहुत सुंदर रचना सखी
बहुत बहुत शुक्रिया सखी आपका स्नेह पा रचना सार्थक हुई।
Deleteयूं ही बिखरा निशब्द मेला बहारो का
ReplyDeleteसर्द मौसम अब समझाने लगा नये अर्थ ।
वाह!! बहुत खूब !!
मीना जी बहुत सा स्नेह आपकी प्रतिक्रिया पा मन प्रसन्न होता है।
Deleteसस्नेह।
बेहद प्यारी रचना .............. स्नेह
ReplyDeleteसस्नेह आभार कामिनी जी ।
Deleteनीरव निशा का दामन थाम देखो मंयक
ReplyDeleteधरा को छूने आया अपनी किरणों से ।...मनोहारी बिम्ब!
बहुत सा आभार विश्व मोहन जी आपको रचना पंसद आई लेखन सार्थक हुवा ।
Deleteसादर
Bahut sundar rachna ... Badhai sakhi
ReplyDeleteढेर सा स्नेह सखी ।
Delete
ReplyDeleteनीरव निशा का दामन थाम देखो मंयक
धरा को छूने आया अपनी किरणों से. ....बहुत ख़ूब 👌
ढेर सा आभार उत्साह वर्धन के लिये ।
Deleteसस्नेह।