अप्रतिम सौन्दर्य
हिम से आच्छादित
अनुपम पर्वत श्रृंखलाएँ
मानो स्फटिक रेशम हो बिखर गया
उस पर ओझल होते
भानु की श्वेत स्वर्णिम रश्मियाँ
जैसे आई हो श्रृँगार करने उनका
कुहासे से ढकी उतंग चोटियाँ
मानो घूंघट में छुपाती निज को
धुएं सी उडती धुँध
ज्यों देव पाकशाला में
पकते पकवानों की वाष्प गंध
उजालों को आलिंगन में लेती
सुरमई सी तैरती मिहिकाएँ
पेड़ों पर छिटके हिम-कण
मानो हीरण्य कणिकाएँ बिखरी पड़ी हों
मैदानों तक पसरी बर्फ़ जैसे
किसी धवल परी ने आंचल फैलया हो
पर्वत से निकली कृष जल धाराएँ
मानो अनुभवी वृद्ध के
बालों की विभाजन रेखा
चीङ,देवदार,अखरोट,सफेदा,चिनार
चारों और बिखरे उतंग विशाल सुरम्य
कुछ सर्द की पीड़ा से उजड़े
कुछ आज भी तन के खड़े
आसमां को चुनौती देते
कल कल के मद्धम स्वर में बहती नदियाँ
उनसे झांकते छोटे बड़े शिला खंड
उन पर बिछा कोमल हिम आसन
ज्यों ऋषियों को निमंत्रण देता साधना को
प्रकृति ने कितना रूप दिया कश्मीर को
हर ऋतु अपरिमित अभिराम अनुपम
शब्दों मे वर्णन असम्भव।
कुसुम कोठारी।
" गिरा अनयन नयन बिनु बानी "
हिम से आच्छादित
अनुपम पर्वत श्रृंखलाएँ
मानो स्फटिक रेशम हो बिखर गया
उस पर ओझल होते
भानु की श्वेत स्वर्णिम रश्मियाँ
जैसे आई हो श्रृँगार करने उनका
कुहासे से ढकी उतंग चोटियाँ
मानो घूंघट में छुपाती निज को
धुएं सी उडती धुँध
ज्यों देव पाकशाला में
पकते पकवानों की वाष्प गंध
उजालों को आलिंगन में लेती
सुरमई सी तैरती मिहिकाएँ
पेड़ों पर छिटके हिम-कण
मानो हीरण्य कणिकाएँ बिखरी पड़ी हों
मैदानों तक पसरी बर्फ़ जैसे
किसी धवल परी ने आंचल फैलया हो
पर्वत से निकली कृष जल धाराएँ
मानो अनुभवी वृद्ध के
बालों की विभाजन रेखा
चीङ,देवदार,अखरोट,सफेदा,चिनार
चारों और बिखरे उतंग विशाल सुरम्य
कुछ सर्द की पीड़ा से उजड़े
कुछ आज भी तन के खड़े
आसमां को चुनौती देते
कल कल के मद्धम स्वर में बहती नदियाँ
उनसे झांकते छोटे बड़े शिला खंड
उन पर बिछा कोमल हिम आसन
ज्यों ऋषियों को निमंत्रण देता साधना को
प्रकृति ने कितना रूप दिया कश्मीर को
हर ऋतु अपरिमित अभिराम अनुपम
शब्दों मे वर्णन असम्भव।
कुसुम कोठारी।
" गिरा अनयन नयन बिनु बानी "
बहुत ही सुन्दर रचना सखी 👌
ReplyDeleteबहुत सा आभार सखी।
Deleteसस्नेह ।
बहुत खूबसूरती से कश्मीर के सोंदर्य का वर्णन किया आपने बहुत सुंदर रचना सखी
ReplyDeleteबहुत सारा आभार सखी आपने रचना को सार्थकता दी ।
Deleteसस्नेह ।
प्रकृति की सुंदरता ..
ReplyDeleteनिसंदेह अवर्णनीय प्रस्तुति है आपकी.
पम्मी जी इतनी मनभावन प्रतिक्रिया से सच उत्साह वर्धन हुवा ।
ReplyDeleteसस्नेह आभार ।
मनभावन ... बहुत सुंदर रचना सखी
ReplyDeleteमनभावन ... बहुत सुंदर रचना सखी
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी ।
Deleteप्रकृति का अनुपम वर्णन ..., लाजवाब शब्द सौष्ठव ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और मनमोहक सृजन कुसुम जी ।
मीना जी आपकी प्रतिक्रिया से मेरा लेखन सार्थक हुवा बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसस्नेह।
प्राकृति का अध्बुध नज़ारा खड़ा कर दिया आँखों के सामने शब्दों के द्वारा ...
ReplyDeleteबहुत लाजवाब ...
सादर आभार आदरणीय नासवा जी ।
ReplyDeleteआपकी स्नेहिल सराहन लेखन को प्रोत्साहित करती है भाई।
ReplyDeleteस्नेह आभार।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-5-22) को "अप्रतिम सौन्दर्य"(चर्चा अंक 4425) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
प्रकृति का अनुपम सौन्दर्य जैसे सजीव हो उठा नेत्रों के समक्ष । अति सुन्दर ।
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