बहारों ने फिर ली कुछ ऐसी करवट
शोलो में शबनमी अब तपिस धीमी सी।
मौसम यूं कह रहा कर कर सलाम
फूलों की नियती में हर हाल झड़ना।
जर्द पत्तों का शाख से बिछड़ना
तिनके के नशेमनो का उजडना।
ख्वाहिशों का रोज सजना बिखरना
सदियों से चला आ रहा ये सितम।
मन के बंध तोड इच्छा क्यों उडती अकेली
मगृ मरीचिका जीवन की अनसुलझी पहेली।
कुसुम कोठारी।
शोलो में शबनमी अब तपिस धीमी सी।
मौसम यूं कह रहा कर कर सलाम
फूलों की नियती में हर हाल झड़ना।
जर्द पत्तों का शाख से बिछड़ना
तिनके के नशेमनो का उजडना।
ख्वाहिशों का रोज सजना बिखरना
सदियों से चला आ रहा ये सितम।
मन के बंध तोड इच्छा क्यों उडती अकेली
मगृ मरीचिका जीवन की अनसुलझी पहेली।
कुसुम कोठारी।
beautiful
ReplyDeleteजी सादर आभार ।
Deleteमन के बंध तोड इच्छा क्यों उडती अकेली
ReplyDeleteमगृ मरीचिका जीवन की अनसुलझी पहेली।
बहुत खूब.......... कुसुम जी ,नववर्ष मगलमय हो
बहुत सा स्नेह आभार कामिनी जी।
Deleteआपको भी पुरे परिवार सहित नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।
सत्य वचन जीवन की पहेली मृगतृष्णा जैसी ही है
ReplyDeleteजी सादर आभार ।उत्साह वर्धन के लिये। नव वर्ष मंगलमय हो।
Deleteख्वाहिशों का रोज सजना बिखरना
ReplyDeleteसदियों से चला आ रहा ये सितम।
मन के बंध तोड इच्छा क्यों उडती अकेली
मगृ मरीचिका जीवन की अनसुलझी पहेली।
सच कहा कुसुम दी कि जीवन एक अनसुलझी पहेली ही हैं। सुंदर प्रस्तुति।
बहुत बहुत स्नेह आभार ज्योति बहन, आपकी रचना को समर्थन देती प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा ।
Deleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें आपको एवं आप के परिजनों को।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 3 जनवरी 2019 को प्रकाशनार्थ 1266 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
जी सादर आभार मै अवश्य उपस्थित रहूंगी
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन टीम की और मेरी ओर से आप सब को नव वर्ष २०१९ की हार्दिक शुभकामनाएं|
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 02/01/2019 की बुलेटिन, " नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें सभी पाठक वर्ग को।
Deleteमेरी रचना को ब्लॉग बुलेटिन में सामिल करने हेतू तहेदिल से शुक्रिया
बहुत खूब..
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना।
रविंद्र जी बहुत सा आभार आपका।
Deleteबहुत सुन्दर कुसुम जी, इस अनबूझ पहेली को सुलझाते-सुलझाते -
ReplyDelete'चल खुसरो घर आपने, रेन भई चहुँ-देस'
की स्थिति आ जाती है.
सादर आभार सर ।
ReplyDelete"चल खुसरो घर आपने" ही तो शाश्वत है जन्म ही एक्सीडेंट हैं महाप्रयाण तो निश्चित हैं।
उत्साह वर्धन करती आपकी उपस्थिति का फिर से आभार।
सादर।
प्रकृति के अनबूझ रहस्यों की भीतर झांकती खूबसूरत रचना ।
ReplyDeleteमीना जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को गति मिली, सुंदर प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया का सस्नेह आभार ।
Deleteबहारों ने फिर ली कुछ ऐसी करवट
ReplyDeleteशोलो में शबनमी अब तपिस धीमी सी।
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर, सार्थक रचना..
सुधा जी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से बहुत खुशी मिलती है सस्नेह आभार।
Deleteउत्साह वर्धन के लिये तहेदिल से शुक्रिया।
ReplyDeleteसादर।
वाह्हह...वाह्हह....बहुत ही सुंदर लाज़वाब रचना...👌👌👌👌
ReplyDeleteहर अशआर उम्दा है दी..
मन के बंध तोड इच्छा क्यों उडती अकेली
मगृ मरीचिका जीवन की अनसुलझी पहेली।
बहुत ही सुंदर ..बधाई दी एक सुंदर सृजन के लिए।
प्यार भरा आभार प्रिय श्वेता आपने मेरी रचना को खास बना दिया।
Deleteसस्नेह
ख्वाहिशों का रोज सजना बिखरना
ReplyDeleteसदियों से चला आ रहा ये सितम।...वाह !!सखी बहुत ख़ूब 👌 नारी जीवन की करुण व्यथा,
सम्पूर्ण जीवन चंद शब्दों में समेट दिया ,बहुत ही सराहनीय
सादर
सस्नेह आभार सखी आपकी सराहना से उत्साहित हुई मैं ।
Deleteसस्नेह ।
"ख्वाहिशों का रोज सजना बिखरना
ReplyDeleteसदियों से चला आ रहा ये सितम।"
जी बहुत खूब लिखा है आपने।
जी बहुत बहुत शुक्रिया आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया।
Deleteसादर ।
मन के बंध तोड इच्छा क्यों उडती अकेली
ReplyDeleteमगृ मरीचिका जीवन की अनसुलझी पहेली।
बहुत सुंदर रचना सखी
बहुत सा स्नेह और आभार सखी उत्साह बढाने के लिये ।
Deleteअनबूझ रहस्यों की भीतर झांकती
ReplyDeleteख्वाहिशों का रोज सजना बिखरना
सदियों से चला आ रहा ये सितम।
जी सादर आभार आपकी सराहना देती पंक्तियाँ उत्साह बढाती हुई ।
Deleteसादर।
हर किसी को अपनी नियति अनुसार ही करना होता है ... समय ये सब स्वयं की करवा लेती है ... हर छंद लाजवाब है ...
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