अलग जमात
मगरूरों की एक न्यारी जमात होती है
ना सींग ना पूंछ ना अलगात होती है।
अपने आप को ये समझते बेहतर सभी से
यही खुद से इनकी मुगलात होती है।
समझते ये किसी को अपने सामने कुछ नही
ये अलग सी दुनिया में एक जात होती है।
जहाँ गलती नही है दाल इनकी वहाँ
सर नीचा और चुप-चुप जुबान होती है।
चाहते सदा सब से चाटुकारिता भरपूर
कोई ना करे तो इन्हें हिराकत होती है।
प्रभु ने ज्ञान दिया इनको थोड़ी नम्रता भी देता
जानते नही झुकना आखिर उनकी हार होती है।
कुसुम कोठारी।
मगरूरों की एक न्यारी जमात होती है
ना सींग ना पूंछ ना अलगात होती है।
अपने आप को ये समझते बेहतर सभी से
यही खुद से इनकी मुगलात होती है।
समझते ये किसी को अपने सामने कुछ नही
ये अलग सी दुनिया में एक जात होती है।
जहाँ गलती नही है दाल इनकी वहाँ
सर नीचा और चुप-चुप जुबान होती है।
चाहते सदा सब से चाटुकारिता भरपूर
कोई ना करे तो इन्हें हिराकत होती है।
प्रभु ने ज्ञान दिया इनको थोड़ी नम्रता भी देता
जानते नही झुकना आखिर उनकी हार होती है।
कुसुम कोठारी।
धाकड़ msg देती poem।
ReplyDeleteहिराकत ने थोड़ी लय में थोड़ी गड़बड़ नहीं कर दी???
जी सादर आभार आपका प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया।
Deleteहिराकत का आपने सही कहा हिराकात गलत होता दुसरा शब्द नही ढूंढ पाई।
तहेदिल से शुक्रिया ध्यान से पढने और टिप्पणी देने का।
कुसुम दी, मगरूरों की जमात को मगरुर ही बहुत होता हैं। यहीं मगरुर उनको ले डुबता हैं। सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteजी सही कहा ज्योति बहन इनका गुरुर ही इन्हें ले डूबता है। ढेर सा स्नेह ।
Deleteप्रभु ने ज्ञान दिया इनको थोड़ी नम्रता भी देता
ReplyDeleteजानते नही झुकना आखिर उनकी हार होती है
सत्य वचन..... कुसुम जी, बहुत सुंदर.....
बहुत बहुत आभार कामिनी जी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया का।
Deleteसस्नेह ।
बहुत सटीक प्रस्तुति..
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय। उत्साह बढाने हेतू तहेदिल से शुक्रिया ।
Deleteबहुत सुन्दर और सार्थक रचना सखी
ReplyDeleteसादर
बहुत सा आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है।
Deleteसस्नेह ।
आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/01/104.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteवाह सुन्दर रचना।
ReplyDeleteसादर आभार।
ReplyDelete