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Wednesday, 9 January 2019

एक अलग जमात

अलग जमात

मगरूरों की एक न्यारी जमात होती है
ना सींग ना पूंछ  ना अलगात होती है।

अपने आप को ये समझते बेहतर सभी से
यही खुद से  इनकी मुगलात होती है।

समझते ये किसी को अपने सामने कुछ नही
ये अलग सी दुनिया में एक जात होती है।

जहाँ गलती  नही है  दाल इनकी वहाँ
सर नीचा और चुप-चुप जुबान होती है।

चाहते सदा सब से  चाटुकारिता भरपूर
कोई ना करे तो इन्हें हिराकत होती है।

प्रभु ने ज्ञान दिया इनको थोड़ी नम्रता भी देता
जानते नही झुकना आखिर उनकी हार होती है।

                  कुसुम कोठारी।

13 comments:

  1. धाकड़ msg देती poem।
    हिराकत ने थोड़ी लय में थोड़ी गड़बड़ नहीं कर दी???

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    1. जी सादर आभार आपका प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया।
      हिराकत का आपने सही कहा हिराकात गलत होता दुसरा शब्द नही ढूंढ पाई।
      तहेदिल से शुक्रिया ध्यान से पढने और टिप्पणी देने का।

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  2. कुसुम दी, मगरूरों की जमात को मगरुर ही बहुत होता हैं। यहीं मगरुर उनको ले डुबता हैं। सुंदर प्रस्तुति।

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    1. जी सही कहा ज्योति बहन इनका गुरुर ही इन्हें ले डूबता है। ढेर सा स्नेह ।

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  3. प्रभु ने ज्ञान दिया इनको थोड़ी नम्रता भी देता
    जानते नही झुकना आखिर उनकी हार होती है
    सत्य वचन..... कुसुम जी, बहुत सुंदर.....

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    1. बहुत बहुत आभार कामिनी जी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया का।
      सस्नेह ।

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  4. बहुत सटीक प्रस्तुति..

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    1. सादर आभार आदरणीय। उत्साह बढाने हेतू तहेदिल से शुक्रिया ।

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  5. बहुत सुन्दर और सार्थक रचना सखी
    सादर

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    1. बहुत सा आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया सदा उत्साह बढाती है।
      सस्नेह ।

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  6. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/01/104.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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