अवसाद, प्रसन्नता
कदम बढते गये
बन राह के सांझेदार
मंजिल का कोई
ठिकाना ना पड़ाव
उलझती सुलझती रही
मन लताऐं बहकी सी
लिपटी रही सोचों के
विराट वृक्षों से संगिनी सी
आशा निराशा में
उगता ड़ूबता भावों का सूरज
हताशा और उल्लास के
हिन्डोले में झूलता मन
अवसाद और प्रसन्नता में
अकुलाता भटकता
कभी पूनम का चाॅद
कभी गहरी काली रात
कुछ सौगातें
कुछ हाथों से फिसलता आज
नर्गिस सा बेनूरी पे रोता
खुशबू पे इतराता जीवन।
कुसुम कोठारी।
कदम बढते गये
बन राह के सांझेदार
मंजिल का कोई
ठिकाना ना पड़ाव
उलझती सुलझती रही
मन लताऐं बहकी सी
लिपटी रही सोचों के
विराट वृक्षों से संगिनी सी
आशा निराशा में
उगता ड़ूबता भावों का सूरज
हताशा और उल्लास के
हिन्डोले में झूलता मन
अवसाद और प्रसन्नता में
अकुलाता भटकता
कभी पूनम का चाॅद
कभी गहरी काली रात
कुछ सौगातें
कुछ हाथों से फिसलता आज
नर्गिस सा बेनूरी पे रोता
खुशबू पे इतराता जीवन।
कुसुम कोठारी।
सुंदर रचना आदरणीय कुसुम जी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका पुरुषोत्तम जी मेरी रचना को प्रोत्साहित करने के लिए।
Deleteसादर
ब्लॉग बुलेटिन टीम की और मेरी ओर से आप सब को ७० वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं|
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 26/01/2019 की बुलेटिन, " ७० वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ब्लॉग बुलेटिन का बहुत बहुत आभार मेरी रचना को चयन करने हेतु।
Deleteसादर।
बहुत सुन्दर सृजन सखी
ReplyDeleteसादर
बेहतरीन रचना सखी
ReplyDeleteबहुत सा आभार सखी।
Deleteसस्नेह ।
अवसाद और प्रसन्नता में
ReplyDeleteअकुलाता भटकता
कभी पूनम का चाॅद
कभी गहरी काली रात
कुछ सौगातें
कुछ हाथों से फिसलता आज
बहुत सुंदर भाव कुसुम दी
बहुत सा आभार शशि भाई आपकी सराहना से लेखन को गति मिलती है।
Deleteसस्नेह
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२८ जनवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सा आभार मै अवश्य उपस्थित रहूंगी।
Deleteसस्नेह।
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteउत्साह वर्धन के लिये सादर आभार ।
Deleteबहुत सुन्दर कुसुम जी.
ReplyDeleteसुख की सुनहरी धूप हो या दुख की काली रात, ये दोनों ही तो मिलकर जीवन को अर्थ देते हैं और जो लोक-कल्याण हेतु इन दोनों से ऊपर उठ जाता है वह महा-मानव बन जाता है.
सर आपकी सारगर्भित व्याख्या से रचना को सदा नये आयाम मिलते हैं। आपका विश्लेषण सटीक और रचना को समानांतर गति देता सा।
Deleteउत्साह वर्धन के लिये बहुत सा आभार ।
सादर
बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह ज्योति बहन ।
Deleteअद्बुत शब्दो का संगम मीता ....🙏🙏
ReplyDeleteढेर सा स्नेह आभार मीता आपकी उपस्थिति सदा मन भावन लगती है ।
Deleteसस्नेह ।
मनुष्य जीवन की भावनाओ को बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत किया है आपने कुसुम जी
ReplyDeleteरचना की गहराई तक उतर सुंदर व्याख्यात्मक पंक्तियाँ रीतू जी।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका।
बहुत सुंदर.... सादर स्नेह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार कामिनी जी आपकी प्रतिक्रिया से मन खुश हुवा ।
Deleteसस्नेह ।
उलझती सुलझती रही
ReplyDeleteमन लताऐं बहकी सी
लिपटी रही सोचों के
विराट वृक्षों से संगिनी सी
वाह बेहतरीन रचना सखी 👌👌
बहुत सा आभार सखी उत्साह वर्धन के लिये ।
Deleteसस्नेह ।
वाह!!बहुत सुंदर!!
ReplyDeleteसस्नेह आभार शुभा जी स्नेह बनाये रखें ।
Deleteसस्नेह आभार शुभा जी स्नेह बनाये रखें ।
Deleteविचारपूर्ण सुंदर सृजन..
ReplyDeleteबहुत खुशी होती है आपकी प्रतिक्रिया पाकर प्रिय पम्मी जी।
Deleteसस्नेह ।
बहुत खूब.........बेहतरीन सृजन
ReplyDeleteहृदय तल से आभार रविंद्र जी ।
Deleteजीवन तो सुख दुःख ख़ुशी अवसाद के बीच झूलता हुआ पेंडुलम है ... कभी इधर तो कभी उधर .... इसको संतुलन करना ही जीवन है ...
ReplyDeleteगहरी रचना ...
वाह आपकी सुंदर व्याख्या से रचना को मनत्व्य मिला नासवा जी आपका हृदय तल से आभार।
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