इंतजार की बेताबी
अंधेरे से कर प्रीति
उजाले सब दे दिये
अब न ढूंढना
उजालो मे हमे कभी।
हम मिलेंगे सुरमई
शाम के घेरों मे
विरह का आलाप ना छेड़ना
इंतजार की बेताबी मे कभी।
नयन बदरी भरे
छलक न जाऐ मायूसी मे
राहों पे निशां ना होंगे
मुड के न देखना कभी।
आहट पर न चौंकना
ना मौजूद होंगे हवाओं मे
अलविदा भी न कहना
शायद लौट आयें कभी।
कुसुम कोठारी ।
अंधेरे से कर प्रीति
उजाले सब दे दिये
अब न ढूंढना
उजालो मे हमे कभी।
हम मिलेंगे सुरमई
शाम के घेरों मे
विरह का आलाप ना छेड़ना
इंतजार की बेताबी मे कभी।
नयन बदरी भरे
छलक न जाऐ मायूसी मे
राहों पे निशां ना होंगे
मुड के न देखना कभी।
आहट पर न चौंकना
ना मौजूद होंगे हवाओं मे
अलविदा भी न कहना
शायद लौट आयें कभी।
कुसुम कोठारी ।
आप तो शब्दों की जादूगर है
ReplyDeleteशब्दों को ख़ूबसूरती से सजाकर क्या खूब लिखा आप ने। लाजवाब !!!
बंदा नवाजी का शुक्रिया मित्र जी ।
Deleteआपका स्नेह अपरिमित है