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Friday, 25 May 2018

हाये रे जेष्ठ की तपन ( तपिश )

तपिश सूरज की बेशुमार
झुलसी धरती
मुरझाई लताऐं
सुलगा अंबर
परिंदों को ठौर नही
प्यासी नदिया
कृषकाय झरने
तृषित  घास
पानी की आस
सूनी गलियां
सूने चौबारे
पशु कलपते
बंद है दरवाजे
गरमी में झुलसता
कर्फ्यू सा शहर
फटी है धरा
किसान लाचार
लहराते लू के थपेड़े
दहकती दोपहरी
सूखे कंठ
सीकर मे डूबा तन
वस्त्र  नम
धूप की थानेदारी
काम की चोरी
आंचल मे छुपाये
मुख ललनाऐं
गात बचाये
बिन बरखा
हाथों मे छतरी
रेत के गुबार
आंखो मे झोंके
क्षरित वृक्ष
प्यासे कुंए
बिकता पानी
फ्रिज ऐसी के ठाठ
रात मे छत पर
बिछती खाट
बादलों की आस
बढती प्यास
सूखते होठ
जलता तन
सूरज बेरहम
हाय रे  जेष्ठ की तपन।।
        कुसुम कोठारी।

 कुसुम कोठारी।

17 comments:

  1. वाह मीता जेठ की सारी तपन को पंक्तियों में केंद्रित कर दिया, बहुत खूब👏👏👏👏👏👏👏👏

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    1. बहुत बहुत आभार मीता

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  2. मन को छूआ ही नही बल्की अंदर तक बैठ गई....!!

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  3. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    सोमवार 28 मई 2018 को प्रकाशनार्थ साप्ताहिक आयोजन हम-क़दम के शीर्षक "ज्येष्ठ मास की तपिश" हम-क़दम का बीसवां अंक (1046 वें अंक) में सम्मिलित की गयी है।


    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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    1. जी सादर आभार आदरणीय।

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  4. बहुत सुंदर लिख डाली आपने दी..सचित्र सुंदर वर्णन... वाह्ह्ह👌👌👌👌

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    1. स्नेह आभार श्वेता ।

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  5. बहुत सुन्दर....
    फ्रिज ऐसी के ठाठ
    रात मे छत पर
    बिछती खाट
    बादलों की आस
    बढती प्यास
    सूखते होठ
    जलता तन
    सूरज बेरहम
    हाय रे जेष्ठ की तपन।।
    वाह!!!

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    1. बहुत सा आभार सखी आपकी सराहना से मन को खुशी हुई

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  6. क्या बात ...
    गर्मी के मौसम से जुड़ी सभी चीज़ों का समावेश एक ही रचना में कर दिया ... उफ़ ये गर्मी भी क्या चीज़ है अपने होने का एहसास पल भर में ही करा देती है ...
    लाजवाब रचना ...

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    1. जी सादर आभार उत्साह वर्धन करती आपकी प्रतिक्रिया रचना को सार्थकता देती सी।

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  7. सचमुच गर्मी की दाहकता के असर से त्रस्त हर बात, हर वस्तु का वर्णन इस कविता में समेट दिया आपने....

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    1. तहेदिल से शुक्रिया मीना जी आपको पसंद आई लेखन सार्थक हुवा।

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