मां को काट दोगे
माना जन्म दाता नही है
पर पाला तुम्हे प्यार से
ठंडी छांव दी प्राण वायु दी
फल दिये
पंछीओं को बसेरा दिया
कलरव उनका सुन खुश होते सदा
ठंडी बयार का झोंका
जो लिपटकर उस से आता
अंदर तक एक शीतलता भरता
तेरे पास के सभी प्रदुषण को
निज मे शोषित करता
हां काट दो बुड्ढा भी हो गया
रुको!! क्यों काट रहे बताओगे?
लकडी चहिये हां तुम्हे भी पेट भरना है
काटो पर एक शर्त है
एक काटने से पहले
कम से कम दस लगाओगे।
ऐसी जगह कि फिर किसी
विकास की भेट ना चढूं मै
समझ गये तो रखो कुल्हाड़ी
पहले वृक्षारोपण करो
जब वो कोमल सा विकसित होने लगे
मुझे काटो मै अंत अपना भी
तुम पर बलिदान करुं
तुम्हारे और तुम्हारे नन्हों की
आजीविका बनूं
और तुम मेरे नन्हों को संभालना
कल वो तुम्हारे वंशजों को जीवन देगें
आज तुम गर नई पौध लगाओगे
कल तुम्हारे वंशज
फल ही नही जीवन भी पायेंगे।
कुसुम कोठारी।
एक पेड काटने वालों पहले दस पेड़ लगाओ फिर हाथ मे आरी उठाओ
माना जन्म दाता नही है
पर पाला तुम्हे प्यार से
ठंडी छांव दी प्राण वायु दी
फल दिये
पंछीओं को बसेरा दिया
कलरव उनका सुन खुश होते सदा
ठंडी बयार का झोंका
जो लिपटकर उस से आता
अंदर तक एक शीतलता भरता
तेरे पास के सभी प्रदुषण को
निज मे शोषित करता
हां काट दो बुड्ढा भी हो गया
रुको!! क्यों काट रहे बताओगे?
लकडी चहिये हां तुम्हे भी पेट भरना है
काटो पर एक शर्त है
एक काटने से पहले
कम से कम दस लगाओगे।
ऐसी जगह कि फिर किसी
विकास की भेट ना चढूं मै
समझ गये तो रखो कुल्हाड़ी
पहले वृक्षारोपण करो
जब वो कोमल सा विकसित होने लगे
मुझे काटो मै अंत अपना भी
तुम पर बलिदान करुं
तुम्हारे और तुम्हारे नन्हों की
आजीविका बनूं
और तुम मेरे नन्हों को संभालना
कल वो तुम्हारे वंशजों को जीवन देगें
आज तुम गर नई पौध लगाओगे
कल तुम्हारे वंशज
फल ही नही जीवन भी पायेंगे।
कुसुम कोठारी।
एक पेड काटने वालों पहले दस पेड़ लगाओ फिर हाथ मे आरी उठाओ
बिल्कुल सही कुसुम जी, विकास की अंधी दौड़ में लोग प्रकृति को अनदेखा कर रहे हैं.
ReplyDeleteआपकी सुंदर व्याख्या और समर्थन का बहुत बहुत आभार सुधा जी ।
Deleteपर्यावरण संरक्षण का संदेश देती उम्दा कविता
ReplyDeleteसादर धन्यवाद लोकेश जी ।
Deleteएक वृक्ष काटो दस उगाओ
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संदेश देती रचना...
वाह!!!!
सादर आभार सुधा जी आपकी समर्थन देती प्रतिक्रिया का।
ReplyDeleteवाह दीदी जी बिलकुल पेड़ भी हमारे माता पिता सा आदरणीय है
ReplyDeleteहमारे जीने का आधार है
बहुत सुंदर लाजवाब रचना और उत्तम संदेश
सार्थक सुंदर टिप्पणी आंचल आपकी ।
Deleteस्नेह आभार।
कल वो तुम्हारे वंशजों को जीवन देगें
ReplyDeleteआज तुम गर नई पौध लगाओगे
कल तुम्हारे वंशज
गहन भाव समेटे यह पंक्तियां ...बहुत ही बढि़या अभिव्यक्ति ।
जी सादर आभार, रचना का सारांश हैं आपने बखूबी पकडा लेखन सार्थक हुवा ।
Deleteपर्यावरण तो सबकी साझा समस्या है ... सिंकिंग चिंतन करना होगा ... सुंदर सामयिक रचना है ...
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय सिर्फ चिंतन ही नही कार्यान्वित करने होंगे सक्रिय साझेदारी के साथ।
ReplyDeleteआपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिये पुनः आभार ।
sarthak sandesh diya kavita ke maadhyam se !!
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