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Tuesday, 15 May 2018

पत्थरों मे फूल

पत्थरों के सीने से देखो
फूल खिले
कितने कोमल
कितने प्यारे
शिलाऐं दरक गई
नजाकत से
खिलखिला उठी बहार
विराने से
कितना मासूम होता
देखो बचपन
परवाह नही किसी
अंजाम की
खिलौनों से ही नही
खेलता बचपन
हर नई खोज होती
दिल अनजाने की।।
  कुसुम कोठारी ।

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