मन अनुभव का कच्चा धान
कैसे रांधु मै अविराम ।
कभी तेज आंच जल जल जाऐ
कभी उबल कर आग बुझाऐ
बुझे आंच कच्चा रह जाऐ
रांधु चावल उजला
बीच कहीं कंकर दिख जाय।
रे मन पागल बावरे,
धीरज आंच चढा तूं चावल
सदज्ञान घृत की कुछ बुंदे डार
हर दाना तेरा खिल खिल जाय
व्यवहार थाली मे सजा पुरसाय
जो देखे अचंभित हो जाय
कौर खाने को हाथ बढाय।।
कुसुम कोठारी।
कैसे रांधु मै अविराम ।
कभी तेज आंच जल जल जाऐ
कभी उबल कर आग बुझाऐ
बुझे आंच कच्चा रह जाऐ
रांधु चावल उजला
बीच कहीं कंकर दिख जाय।
रे मन पागल बावरे,
धीरज आंच चढा तूं चावल
सदज्ञान घृत की कुछ बुंदे डार
हर दाना तेरा खिल खिल जाय
व्यवहार थाली मे सजा पुरसाय
जो देखे अचंभित हो जाय
कौर खाने को हाथ बढाय।।
कुसुम कोठारी।
वाह वाह अद्भुत ज्ञान ध्यान सा काव्य मीता
ReplyDeleteआती उत्तम .🙏शुभ दिवस
आभार मीता आपका, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteवाह्ह..दी...अद्भुत, अप्रतिम,अद्वितीय... बहुत सुंदर रचना दी...गज़ब का दर्शन लिखे है दी..बहुत सुंदर👌
ReplyDeleteस्नेह आभार श्वेता आपकी टिप्पणी खुश कर देती है सदा।
Deleteवाह!!कुसुम जी ..अद्भुत !!!!
ReplyDeleteशुभा जी अतुल्य आभार आपका
Deleteसुंदर... अप्रतिम रचना
ReplyDeleteसादर आभार सुधा जी।
ReplyDeleteअद्भुत लेखन कुशुमजी एकदम सटीक और सुसज्जित रचना
ReplyDeleteजु आभार सुप्रिया जी।
Deleteवाह दीदी जी अतुलनीय अद्भुत ज्ञान का भंडार लिए सुंदर रचना
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