Sunday, 13 May 2018

कच्चा धान

मन अनुभव  का कच्चा धान
कैसे रांधु मै अविराम ।
कभी तेज आंच जल जल जाऐ
कभी उबल कर आग बुझाऐ
बुझे आंच कच्चा रह जाऐ
रांधु  चावल  उजला
बीच कहीं कंकर दिख जाय।
रे मन पागल बावरे,
धीरज आंच चढा तूं चावल
सदज्ञान घृत की कुछ बुंदे डार
हर दाना तेरा खिल खिल जाय
व्यवहार थाली मे सजा पुरसाय
जो देखे अचंभित हो जाय
कौर खाने को हाथ बढाय।।
         कुसुम कोठारी।

11 comments:

  1. वाह वाह अद्भुत ज्ञान ध्यान सा काव्य मीता
    आती उत्तम .🙏शुभ दिवस

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    1. आभार मीता आपका, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।

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  2. वाह्ह..दी...अद्भुत, अप्रतिम,अद्वितीय... बहुत सुंदर रचना दी...गज़ब का दर्शन लिखे है दी..बहुत सुंदर👌

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    1. स्नेह आभार श्वेता आपकी टिप्पणी खुश कर देती है सदा।

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  3. वाह!!कुसुम जी ..अद्भुत !!!!

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    1. शुभा जी अतुल्य आभार आपका

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  4. सुंदर... अप्रतिम रचना

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  5. सादर आभार सुधा जी।

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  6. अद्भुत लेखन कुशुमजी एकदम सटीक और सुसज्जित रचना

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    1. जु आभार सुप्रिया जी।

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  7. वाह दीदी जी अतुलनीय अद्भुत ज्ञान का भंडार लिए सुंदर रचना

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