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Monday, 28 May 2018

मुसाफिर अंजान डगर का

एक मुसाफिर अंजान डगर का
धुंधली सी भीगी सी राहें
ना कोई साथी ना ही कारवां ।

"जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे
 तोबे ऐकला चोलो रे"

ले ऐसा विश्वास
चला पथिक,
फिसलन कांटे
रोड़े भरपूर,
फिर भी ना हारा
मतवाला,
चला चला
वो चला निरंतर,
अथक अटक
अबाध अग्रसर,
सलिला सा खुद
राह बनाता,
गीत जीत के गाता
गुनगुनाता,
अनुगूंज हृदय मे
स्वप्न जय की
धुन जगी ज्यों
विश्व विजय की ।

ऐसे मुसाफिर मंजिल पाते निश्चित
कौन रोक पाया विजय अपराजित 
एक मुसाफिर अंजान डगर का  ।

               कुसुम कोठारी।

15 comments:

  1. अप्रतिम प्रस्तुति👏👏👏👏👏

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    1. बहुत सा आभार मीता आपका समर्थन मिला
      शुभ दिवस।

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  2. बहुत सुन्दर रचना
    खूबसूरत भाव गहराई समेटे

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  3. अंजान डगर का मुसाफिर
    धुनी जगी विश्व विजय की....
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर....

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    1. आपकी वाह! बस सखी सादर आभार।

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  4. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 31 मई 2018 को प्रकाशनार्थ 1049 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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    Replies
    1. जी सादर आभार।
      मै जरूर उपस्थित होऊगीं।

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  5. बहुत शानदार रचना।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।

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  6. बेहद खूबसूरत

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    1. बहुत सा आभार लोकेश जी ।

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  7. खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।

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    1. सादर आभार आदरणीय।
      उत्साह वर्धन का।

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