एक मुसाफिर अंजान डगर का
धुंधली सी भीगी सी राहें
ना कोई साथी ना ही कारवां ।
"जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे
तोबे ऐकला चोलो रे"
ले ऐसा विश्वास
चला पथिक,
फिसलन कांटे
रोड़े भरपूर,
फिर भी ना हारा
मतवाला,
चला चला
वो चला निरंतर,
अथक अटक
अबाध अग्रसर,
सलिला सा खुद
राह बनाता,
गीत जीत के गाता
गुनगुनाता,
अनुगूंज हृदय मे
स्वप्न जय की
धुन जगी ज्यों
विश्व विजय की ।
ऐसे मुसाफिर मंजिल पाते निश्चित
कौन रोक पाया विजय अपराजित
एक मुसाफिर अंजान डगर का ।
कुसुम कोठारी।
धुंधली सी भीगी सी राहें
ना कोई साथी ना ही कारवां ।
"जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे
तोबे ऐकला चोलो रे"
ले ऐसा विश्वास
चला पथिक,
फिसलन कांटे
रोड़े भरपूर,
फिर भी ना हारा
मतवाला,
चला चला
वो चला निरंतर,
अथक अटक
अबाध अग्रसर,
सलिला सा खुद
राह बनाता,
गीत जीत के गाता
गुनगुनाता,
अनुगूंज हृदय मे
स्वप्न जय की
धुन जगी ज्यों
विश्व विजय की ।
ऐसे मुसाफिर मंजिल पाते निश्चित
कौन रोक पाया विजय अपराजित
एक मुसाफिर अंजान डगर का ।
कुसुम कोठारी।
अप्रतिम प्रस्तुति👏👏👏👏👏
ReplyDeleteबहुत सा आभार मीता आपका समर्थन मिला
Deleteशुभ दिवस।
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteखूबसूरत भाव गहराई समेटे
बहुत सा आभार सखी ।
Deleteअंजान डगर का मुसाफिर
ReplyDeleteधुनी जगी विश्व विजय की....
वाह!!!
बहुत सुन्दर....
आपकी वाह! बस सखी सादर आभार।
Deleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 31 मई 2018 को प्रकाशनार्थ 1049 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
जी सादर आभार।
Deleteमै जरूर उपस्थित होऊगीं।
बहुत शानदार रचना।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteबहुत सुन्दर!!!!
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत
ReplyDeleteबहुत सा आभार लोकेश जी ।
Deleteखूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय।
Deleteउत्साह वर्धन का।