Sunday, 6 May 2018

इंतजार की बेताबी

इंतजार की बेताबी

अंधेरे से कर प्रीति
उजाले सब दे दिये
अब न ढूंढना
उजालो मे हमे कभी।

हम मिलेंगे सुरमई
शाम  के   घेरों मे
विरह का आलाप ना छेड़ना
इंतजार की बेताबी मे कभी।

नयन बदरी भरे
छलक न जाऐ मायूसी मे
राहों पे निशां ना होंगे
मुड के न देखना कभी।

आहट पर न चौंकना
ना मौजूद होंगे हवाओं मे
अलविदा भी न कहना
शायद लौट आयें कभी।

       कुसुम कोठारी ।

2 comments:

  1. आप तो शब्दों की जादूगर है
    शब्दों को ख़ूबसूरती से सजाकर क्या खूब लिखा आप ने। लाजवाब !!!

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    1. बंदा नवाजी का शुक्रिया मित्र जी ।
      आपका स्नेह अपरिमित है

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