Saturday, 5 May 2018

टुटा पत्ता

मिसाल कोई मिलेगी
उजडी बहार मे भी
उस पत्ते सी
जो पेड़ की शाख मे
अपनी हरितिमा लिये डटा है
अब भी।
हवाऔं की पुरजोर कोशिश
उसे उडा ले चले संग अपने
कहीं खाक मे मिला दे
पर वो जुडा था पेड के स्नेह से
डटा रहता हर सितम सह कर
पर यकायक वो वहां से
टूट कर उड चला हवाओं के संग
क्योंकि पेड़ बोल पड़ा उस दिन
मैने तो प्यार से पाला तुम्हे
क्यों यहां शान से इतराते हो
मेरे उजड़े हालात का उपहास उड़ाते हो
पत्ता कुछ कह न पाया 
शर्म से बस अपना बसेरा छोड़ चला
वो अब भी पेड के कदमो मे लिपटा है
पर अब वो सूखा बेरौनक हो गया
साथ के सूखे पुराने पत्तों जैसा
उदास
पेड की शाख पर वह
कितना रूमानी था।
                कुसुम कोठारी।

9 comments:

  1. बहुत खूबसूरत रचना। लाजवाब !!!

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    1. स्नेह आभार सखी ब्लॉग पर आपकी उपस्थिति सुनिश्चित है। पुनः आभार।

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  2. वाह!!बहुत खूबसूरत रचना!

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  3. बहुत सुंदर रचना दी,
    आपकी रचनाएँ सदैव एक सार्थक संदेश लेकर आती हैं...बहुत सरलता से जीवन के सत्य बता सदैव सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करती है।
    शाख से टूटा पत्ता माटी ही हो जाता है
    मूल्य खो जाए जीवन के गर
    मनुष्य पतन की घाटी में खो जाता है।

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    1. वाह बहुत सुन्दर प्रतिक्रिया श्वेता सदा मेरे लेखन को अनमोल कर देते हो आप स्नेह आभार ।

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  4. सादर आभार आपकी विस्तृत व्याख्यात्मक प्रतिक्रिया का ।

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  5. वाह दीदी जी आपकी कलमकारी की तो कोई सानी नही एक पत्ते से जीवन को कितना कुछ सिखा गयी आप
    कुदरत का कण कण हमे कुछ सिखाता है पर उस सीख को अपने में उतार ज़माने तक पहुँचाती आपकी जैसी कलमकारी की तो कुदरत भी सराहना करती होगी
    लाजवाब उत्क्रष्ट रचना 👌

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  6. आपकी स्नेह सिक्त प्रतिक्रिया से बहुत खुशी हुई प्रिय आंचल बहन,
    स्नेह अतिरेक मे अतिशयोक्ति तो है पर मन लुभाती।
    ढेर सा स्नेह ।

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