Monday, 30 April 2018

श्रम ही जीवन है

तीन क्षणिकाएं।

1 कीचड़ से बीन  कमल हम लाते हैं
पंक मे रह के भी पंकज से मुस्कुरातये हैं  ।।


2 ओ नाव के अकेले मुसाफिर
तूं क्यों है फिक्र मे राहगीर

तूं कहां तन्हा चल रहा है
तेरे संग सारा दरिया चल रहा है।।


3 ओ पथिक सुपथ के, लिये तेज पुंज हाथ चला
रौशन कर दे हर तिमिर पथ,ऐसा ले विश्वास चला।।

              कुसुम कोठारी।

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