साथ
कल्पना ये कल्पना है
आपके बिन सब अधूरी।
चाँद तक सीढ़ी बँधेगी
मखमली सी आस पूरी।।
संग तेरे मुस्कुराते
मोहक रंग भरी होली
आसमान पर डाल झूला
सजती मेघों की डोली।
गगन छुलें हाथ बढ़ाकर
साथ तेरा है जरूरी।।
सदा हम तेरे भरोसे
जिंदगी में जब मिले थे।
बाग तुम भंवरा भी तुम
फूल जैसे मन खिले थे ।
खिलखिलाती चाँदनी में
थामकर आशा की धूरी।
पत्थरों पर बैठकर जब
आँखों से सिंधु निहारूँ।
उर्मि की उठती रवानी
नाम तेरा ही पुकारूँ।
कल्पना ये कल्पना है
आपके बिन सब अधूरी।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
कल्पना ये कल्पना है
आपके बिन सब अधूरी।
चाँद तक सीढ़ी बँधेगी
मखमली सी आस पूरी।।
संग तेरे मुस्कुराते
मोहक रंग भरी होली
आसमान पर डाल झूला
सजती मेघों की डोली।
गगन छुलें हाथ बढ़ाकर
साथ तेरा है जरूरी।।
सदा हम तेरे भरोसे
जिंदगी में जब मिले थे।
बाग तुम भंवरा भी तुम
फूल जैसे मन खिले थे ।
खिलखिलाती चाँदनी में
थामकर आशा की धूरी।
पत्थरों पर बैठकर जब
आँखों से सिंधु निहारूँ।
उर्मि की उठती रवानी
नाम तेरा ही पुकारूँ।
कल्पना ये कल्पना है
आपके बिन सब अधूरी।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
वाह दी खूबसूरत,
ReplyDeleteप्रेम और समर्पित भावों की अति सुंदर अभिव्यक्ति।
आपकी लिखी प्रेम कविताएँ कम ही पढ़ी है दी।
सस्नेह आभार श्वेता आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला साथ ही सच कहा आपने मैं इस विषय पर न बराबर लिखती हूं ।
Deleteसस्नेह
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteबुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामंनाएँ।
आपको भी आदरणीय हार्दिक शुभकामनाएं।
Deleteसादर आभार।
गहरी भाव समेटे सुंदर सृजन कुसुम जी, सादर नमस्कार
ReplyDeleteनमस्कार कामिनी जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteवाह! आदरणीया कुसुम दीदी बहुत ख़ूबसूरत है आपका नवगीत. कल्पनालोक के मनमोहक बिम्ब हृदयस्पर्शी चित्रण के साथ भावों में गूँथे गए हैं.
ReplyDeleteबधाई.
सादर.
बहुत बहुत आभार अनिता आपकी सुंदर विस्तृत प्रतिक्रिया से रचना के मतंत्व स्पष्ट हुए।
Deleteशानदार टिपण्णी से दिल्ली प्रसन्नता हुई ।
सस्नेह
आपको मेरा सादर प्रणाम -
ReplyDelete"सदा हम तेरे भरोसे
जिंदगी में जब मिले थे।
बाग तुम भंवरा भी तुम
फूल जैसे मन खिले थे ।
खिलखिलाती चाँदनी में
थामकर आशा की धूरी। "
सबसे सुंदर लाइन है यह ।
बहुत बहुत आभार आपका। रचना के हर पहलू पर दृष्टि डाल कर अपने रचना का मान बढ़ाया।
Deleteब्लाग पर सदा आपका स्वागत है ।
सादर
सादर आभार मीना जी ।
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteसाथ और कल्पना का बेहतरीन संगम नज़र आया आपके नवगीत में।
काव्य में कल्पनालोक की सैर वाचक को रसमय अनुभूतियों से भर देती है।
बहुत अच्छा लगा आपका यह नवगीत पढ़कर आदरणीया दीदी।
सादर नमन।