विधु का सागर स्नान
वायु वेग में विचलित विचि
क्षीरनिधि को भा रही है।
तरंग मोहित हो शशि पर
तट कुलांचे खा रही है।
रूप यूं निखरा निशा का
नील जलज शोभा सरसी।
झूके मुकुल नैना सलज
नभ से ज्यों आभा बरसी।
उर्मियाँ घूँघट हटाकर
फिर मचलती आ रही हैं।।
पूनो का मृगांक मंजुल
द्युलोक अँगन लीला करे।
झिलमिलाते तारकों से
जीवन सोम निर्झर झरे।
भर पियूष मयूख वर्तुल
चांदनी भी गा रही है ।।
रजनीपति किलोल करते
पारावार अवगाहना
झाग मंडित नीर सारा
उबटन रजत कर नाहना
बैठ कौमुदी झूले पर
रात बीती जा रही है।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
वायु वेग में विचलित विचि
क्षीरनिधि को भा रही है।
तरंग मोहित हो शशि पर
तट कुलांचे खा रही है।
रूप यूं निखरा निशा का
नील जलज शोभा सरसी।
झूके मुकुल नैना सलज
नभ से ज्यों आभा बरसी।
उर्मियाँ घूँघट हटाकर
फिर मचलती आ रही हैं।।
पूनो का मृगांक मंजुल
द्युलोक अँगन लीला करे।
झिलमिलाते तारकों से
जीवन सोम निर्झर झरे।
भर पियूष मयूख वर्तुल
चांदनी भी गा रही है ।।
रजनीपति किलोल करते
पारावार अवगाहना
झाग मंडित नीर सारा
उबटन रजत कर नाहना
बैठ कौमुदी झूले पर
रात बीती जा रही है।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बहुत खूबसूरत नवगीत आदरणीया दीदी🏵️👌👌
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह आभार बहना ।
Deleteसारगर्भित गीत।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय।
Deleteसादर।
बहुत ही खूबसूरत नवगीत सखी
ReplyDeleteबहुत सा आभार सखी, उत्साहवर्धन हुआ।
Deleteसस्नेह
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 25 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय।
Deleteमैं अवश्य उपस्थित रहूंगी ।
सादर।
सुन्दर प्राकृति के भाव से सजा नव गीत ...
ReplyDeleteबहुत सा आभार आपका नासवा जी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसे रचना मुखरित हुई
सादर।
बहुत सुंदर सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी ब्लाग पर आपको देख मन हर्षित हुआ।
Deleteसस्नेह।
अद्भुत सृजन.... सुंदर नवगीत दीदी
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteबहुत सा स्नेह आभार आपका सुधा बहना।
Deleteसस्नेह।
बहुत सा सरनेम आभार ज्योति बहन।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी
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