दोला !!
इक हिंडोला वृक्ष बँधा है
दूजा अदृश्य डोले ।
थिरक किवाड़ी मन थर झूले
फिर भी नींद न खोले ।
बादल कैसे काले काले,
छाई घटा घनघोर ।
चमक-चमक विकराल दामिनी
छुए क्षितिजी के छोर ।
मन के नभ पर महा प्रभंजन,
कितने बदले चोले ।।
रेशम डोर गांठ कच्ची है ।
डाली सूखी टूटे ।
पनघट जाकर भरते-भरते
मन की गागर फूटे।
विषयों के घेरे में जीवन ।
दोला जैसे दोले ।।
बहुत कमाया खर्चा ज्यादा
बजट बिगाड़ा पूरा ।
रहें बटोरे निशदिन हर पल ।
भग्न सपन का चूरा ।
वांछा में आड़ोलित अंतर ।
कच्ची माटी तोले ।।
कुसुम कोठारी' प्रज्ञा'
इक हिंडोला वृक्ष बँधा है
दूजा अदृश्य डोले ।
थिरक किवाड़ी मन थर झूले
फिर भी नींद न खोले ।
बादल कैसे काले काले,
छाई घटा घनघोर ।
चमक-चमक विकराल दामिनी
छुए क्षितिजी के छोर ।
मन के नभ पर महा प्रभंजन,
कितने बदले चोले ।।
रेशम डोर गांठ कच्ची है ।
डाली सूखी टूटे ।
पनघट जाकर भरते-भरते
मन की गागर फूटे।
विषयों के घेरे में जीवन ।
दोला जैसे दोले ।।
बहुत कमाया खर्चा ज्यादा
बजट बिगाड़ा पूरा ।
रहें बटोरे निशदिन हर पल ।
भग्न सपन का चूरा ।
वांछा में आड़ोलित अंतर ।
कच्ची माटी तोले ।।
कुसुम कोठारी' प्रज्ञा'
वाह!!कुसुम जी ,अद्भुत ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शुभा जी।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 13 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteवाह्ह वाह..अति सुंदर शानदार गीत दी।
ReplyDeleteअप्रतिम जीवन दर्शन।
ये पंक्तियाँ तो गज़ब
बहुत कमाया खर्चा ज्यादा
बजट बिगाड़ा पूरा ।
रहें बटोरे निशदिन हर पल ।
भग्न सपन का चूरा ।
वांछा में आड़ोलित अंतर ।
कच्ची माटी तोले ।।
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बहुत शानदार
बहुत बहुत स्नेह आभार श्वेता ,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से सदा लेखन को नमी उर्जा मिलती है ।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteबेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteब्लाग पर सदा स्वागत है आपका ।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.5.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3701 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।
ReplyDeleteधन्यवाद
जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय ।
Deleteमेरी उपस्थिति जरूर रहेगी।
सादर।
अतिसुन्दर।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
वाह! बहुत सुंदर नवगीत रचा है आपने आदरणीया कुसुम दीदी.
ReplyDeleteनूतन बिम्बों से सजा नवगीत भावों से भरा हुआ है. मर्मस्पर्शी सृजन के लिए हार्दिक बधाई आपको.
सादर.
ReplyDeleteरेशम डोर गांठ कच्ची है ।
डाली सूखी टूटे ।
पनघट जाकर भरते-भरते
मन की गागर फूटे।
विषयों के घेरे में जीवन ।
दोला जैसे दोले ।।
बहुत कमाया खर्चा ज्यादा
बजट बिगाड़ा पूरा ।
रहें बटोरे निशदिन हर पल ।
भग्न सपन का चूरा ।
वांछा में आड़ोलित अंतर ।
कच्ची माटी तोले ।।
बहुत सुंदर रचना ,आपको बधाई हो