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Tuesday, 12 May 2020

दोला

दोला !!

इक हिंडोला वृक्ष बँधा है
दूजा अदृश्य डोले ।
थिरक किवाड़ी मन थर झूले
फिर भी नींद न खोले ।

बादल कैसे काले काले,
छाई घटा घनघोर ।
चमक-चमक विकराल दामिनी
छुए क्षितिजी के छोर ।
मन के नभ पर महा प्रभंजन,
कितने बदले चोले ।।

रेशम डोर गांठ कच्ची है ।
डाली सूखी टूटे ।
पनघट जाकर भरते-भरते
मन की गागर फूटे।
विषयों के घेरे में जीवन ।
दोला जैसे दोले ।।

बहुत कमाया खर्चा ज्यादा
बजट बिगाड़ा पूरा ।
रहें बटोरे निशदिन हर पल ।
भग्न सपन का चूरा ।
वांछा में आड़ोलित अंतर ।
कच्ची माटी तोले ।।

कुसुम कोठारी' प्रज्ञा'

17 comments:

  1. वाह!!कुसुम जी ,अद्भुत ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका शुभा जी।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 13 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  3. वाह्ह वाह..अति सुंदर शानदार गीत दी।
    अप्रतिम जीवन दर्शन।

    ये पंक्तियाँ तो गज़ब
    बहुत कमाया खर्चा ज्यादा
    बजट बिगाड़ा पूरा ।
    रहें बटोरे निशदिन हर पल ।
    भग्न सपन का चूरा ।
    वांछा में आड़ोलित अंतर ।
    कच्ची माटी तोले ।।
    ----
    बहुत शानदार

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    Replies
    1. बहुत बहुत स्नेह आभार श्वेता ,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से सदा लेखन को नमी उर्जा मिलती है ।
      सस्नेह।

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  4. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  5. बेहतरीन प्रस्तुति।

    सादर

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका ।

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  6. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 14.5.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3701 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी।

    धन्यवाद

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    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय ।
      मेरी उपस्थिति जरूर रहेगी।
      सादर।

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  7. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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  8. वाह! बहुत सुंदर नवगीत रचा है आपने आदरणीया कुसुम दीदी.
    नूतन बिम्बों से सजा नवगीत भावों से भरा हुआ है. मर्मस्पर्शी सृजन के लिए हार्दिक बधाई आपको.
    सादर.

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  9. रेशम डोर गांठ कच्ची है ।
    डाली सूखी टूटे ।
    पनघट जाकर भरते-भरते
    मन की गागर फूटे।
    विषयों के घेरे में जीवन ।
    दोला जैसे दोले ।।

    बहुत कमाया खर्चा ज्यादा
    बजट बिगाड़ा पूरा ।
    रहें बटोरे निशदिन हर पल ।
    भग्न सपन का चूरा ।
    वांछा में आड़ोलित अंतर ।
    कच्ची माटी तोले ।।
    बहुत सुंदर रचना ,आपको बधाई हो

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