जो फूलों सी ज़िंदगी जीते कांटे हज़ार लिये बैठे हैं ।
दिल में फ़रेब मुख पे मुस्कान का मुखौटा लिये बैठें हैं।।
खुला आसमां ऊपर,ख्वाबों के महल लिये बैठें हैं
कुछ, टूटते अरमानों का ताजमहल लिये बैठें हैं। ।
सफेद दामन वाले भी दिल दाग़दार लिये बैठे हैं।
क्या लें दर्द किसी का कोई अपने हज़ार लिये बैठें हैं।।
हंसते हुए चहरे वाले दिल लहुलुहान लिये बैठे हैं
एक भी ज़वाब नही, सवाल बेशुमार लिये बैठें हैं। ।
टुटी कश्ती वाले हौसलों की पतवार लिये बैठे हैं।
डूबने से डरने वाले साहिल पर नाव लिये बैठे हैं।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
दिल में फ़रेब मुख पे मुस्कान का मुखौटा लिये बैठें हैं।।
खुला आसमां ऊपर,ख्वाबों के महल लिये बैठें हैं
कुछ, टूटते अरमानों का ताजमहल लिये बैठें हैं। ।
सफेद दामन वाले भी दिल दाग़दार लिये बैठे हैं।
क्या लें दर्द किसी का कोई अपने हज़ार लिये बैठें हैं।।
हंसते हुए चहरे वाले दिल लहुलुहान लिये बैठे हैं
एक भी ज़वाब नही, सवाल बेशुमार लिये बैठें हैं। ।
टुटी कश्ती वाले हौसलों की पतवार लिये बैठे हैं।
डूबने से डरने वाले साहिल पर नाव लिये बैठे हैं।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteसादर आभार आपका आदरणीय।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 02 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteमैं मंच पर उपस्थित होने की यथा संभव प्रयास करूंगी।
सादर।
बहुत अच्छे शेर ... हर छंद गहरी बात और दूर का प्रश्न करता है ... समाज से ... खुद से ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आपसे सराहना मिली आपकी विधा पर उत्साहवर्धन हुआ।
Deleteसादर।
हंसते हुए चहरे वाले दिल लहुलुहान लिये बैठे हैं
ReplyDeleteएक भी ज़वाब नही, सवाल बेशुमार लिये बैठें हैं।
बहुत खूब !!
लाजवाब सृजन कुसुम जी !
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला और मुझे नव उत्साह।
Deleteसस्नेह।
गहरी संवेदना लिए सुंदर सृजन ,सादर नमन कुसुम जी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी
Deleteरचना के भावों पर गहन दृष्टि रचना सार्थक हुई।
सस्नेह।
बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर अपनी रचना को देखना सौभाग्य का कारक है । मैं उपस्थित होने का यथा संभव प्रयास करूंगी।
ReplyDeleteसस्नेह।
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी।
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