तीन क्षणिकाएँ
सिसकती मानवता
सिसकती मानवता
कराह रही है ,
हर ओर फैली धुंध कैसी है,
बैठे हैं एक ज्वालामुखी पर
सब सहमें से डरे-डरे,
बस फटने की राह देख रहे ,
फिर सब समा जायेगा
एक धधकते लावे में ।
जिन डालियों पर
सजा करते थे झूले ,
कलरव था पंछियों का
वहाँ अब सन्नाटा है ,
झूल रहे हैं फंदे निर्लिप्त
कहलाते जो अन्न दाता
भूमि पुत्र भूमि को छोड़
शून्य के संग कर रहे समागम।
पद और कुर्सी का बोलबाला
नैतिकता का निकला दिवाला,
अधोगमन की ना रही सीमा
नस्लीय असहिष्णुता में फेंक चिंगारी,
सेकते स्वार्थ की रोटियाँ
देश की परवाह किसको,
जैसे खुद रहेंगे अमर सदा
हे नराधमो मनुज हो या दनुज।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सिसकती मानवता
सिसकती मानवता
कराह रही है ,
हर ओर फैली धुंध कैसी है,
बैठे हैं एक ज्वालामुखी पर
सब सहमें से डरे-डरे,
बस फटने की राह देख रहे ,
फिर सब समा जायेगा
एक धधकते लावे में ।
जिन डालियों पर
सजा करते थे झूले ,
कलरव था पंछियों का
वहाँ अब सन्नाटा है ,
झूल रहे हैं फंदे निर्लिप्त
कहलाते जो अन्न दाता
भूमि पुत्र भूमि को छोड़
शून्य के संग कर रहे समागम।
पद और कुर्सी का बोलबाला
नैतिकता का निकला दिवाला,
अधोगमन की ना रही सीमा
नस्लीय असहिष्णुता में फेंक चिंगारी,
सेकते स्वार्थ की रोटियाँ
देश की परवाह किसको,
जैसे खुद रहेंगे अमर सदा
हे नराधमो मनुज हो या दनुज।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (३१-०५-२०२०) को शब्द-सृजन-२३ 'मानवता,इंसानीयत' (चर्चा अंक-३७१८) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सार्थक क्षणिकाएँ।
ReplyDeleteपत्रकारिता दिवस की बधाई हो।
हमेशा की तरह संवेदनशील सृजन। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया कुसुम जी ।
ReplyDeleteदेश की परवाह किसको,
ReplyDeleteजैसे खुद रहेंगे अमर सदा
हे नराधमो मनुज हो या दनुज।
मनुज नहीं दनुज ही हैं मनुज कख मुखौटा लगाकर
लाजवाब क्षणिकाएं।
मानवता पर तीन क्षणिकाओं के माध्यम से अलग-अलग सामयिक बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है। क्षणिका भी इतनी प्रभावशाली हो सकती जब इसमें भाव-गाम्भीर्य समाहित हो।
ReplyDeleteबेहतरीन क्षणिकाओं के ज़रिये प्रासंगिक मुद्दों पर गंभीर चिंतन उभरा है।
सादर नमन आदरणीया दीदी।
बहुत खूब लिखा आपने आदरणीया दीदी जी। सुंदर और सटीक सृजन। सादर प्रणाम 🙏
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन कुसुम जी।
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