झील के शांत पानी में
शाम की उतरती धुंधली उदासी
कुछ और बेरंग,
श्यामल शाम का सुनहरी टुकडा
कहीं "क्षितिज" के क्षोर पर पहुंच
काली कम्बली में सिमटता,
निशा के उद्धाम अंधकार से
एकाकार हो,
जैसे पर्दाफाश करता
अमावस्या के रंग हीन
बेरौनक आसमान का,
निहारिकाऐं जैसे अवकाश पर हो
चांद के साथ कही सुदूर प्रांत में,
ओझल कहीं किसी गुफा में विश्राम करती,
छुटपुट तारे बेमन से टिमटिमाते
धरती को निहारते मौन,
कुछ कहना चाहते
शायद धरा से मिलन का
कोई सपना हो,
जुगनु दंभ में इतराते
चांदनी की अनुपस्थिति में
स्वयं को चांद समझ डोलते,
चकोर व्याकुल कहीं
सरसराते अंधेरे पात में दुबका,
खाली सूनी आँखों में
एक एहसास अनछुआ सा
अदृश्य से गगन को
आशा से निहारता,
शशि की अभिलाषा में
विरह में जलता
कितनी सदियों
यूं मयंक के मय में
उलझा रहेगा
इसी एहसास में
जीता मरता रहेगा,
उतरती रहेगी कब तक
शांत झील में शाम की उदासियाँ।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
शाम की उतरती धुंधली उदासी
कुछ और बेरंग,
श्यामल शाम का सुनहरी टुकडा
कहीं "क्षितिज" के क्षोर पर पहुंच
काली कम्बली में सिमटता,
निशा के उद्धाम अंधकार से
एकाकार हो,
जैसे पर्दाफाश करता
अमावस्या के रंग हीन
बेरौनक आसमान का,
निहारिकाऐं जैसे अवकाश पर हो
चांद के साथ कही सुदूर प्रांत में,
ओझल कहीं किसी गुफा में विश्राम करती,
छुटपुट तारे बेमन से टिमटिमाते
धरती को निहारते मौन,
कुछ कहना चाहते
शायद धरा से मिलन का
कोई सपना हो,
जुगनु दंभ में इतराते
चांदनी की अनुपस्थिति में
स्वयं को चांद समझ डोलते,
चकोर व्याकुल कहीं
सरसराते अंधेरे पात में दुबका,
खाली सूनी आँखों में
एक एहसास अनछुआ सा
अदृश्य से गगन को
आशा से निहारता,
शशि की अभिलाषा में
विरह में जलता
कितनी सदियों
यूं मयंक के मय में
उलझा रहेगा
इसी एहसास में
जीता मरता रहेगा,
उतरती रहेगी कब तक
शांत झील में शाम की उदासियाँ।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
ReplyDeleteनिहारिकाऐं जैसे अवकाश पर हो
चांद के साथ कही सुदूर प्रांत में,
ओझल कहीं किसी गुफा में विश्राम करती,
छुटपुट तारे बेमन से टिमटिमाते
धरती को निहारते मौन,
कुछ कहना चाहते
शायद धरा से मिलन का
कोई सपना हो,
जुगनु दंभ में इतराते
चांदनी की अनुपस्थिति में
स्वयं को चांद समझ डोलते,
चकोर व्याकुल कहीं
सरसराते अंधेरे पात में दुबका,
खाली सूनी आँखों में
एक एहसास अनछुआ सा
जितनी सुंदर रचना ,उतने ही सुंदर शब्द ,बधाई हो आपको ,नमस्कार
उदासी चाहे मन कि हो या प्रकृति की, व्याकुलता से भर देती है. बहुत सुन्दर रचना, बधाई.
ReplyDeleteउदासी मन की व्याकुलता बढ़ा ही देती हैं। सुंदर रचना, कुसुम दी।
ReplyDeleteछुटपुट तारें बेमन से टिमटिमाते...
ReplyDeleteचकोर व्याकुल...
व्याकुलता का जीवंत शब्दचित्र दी।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
सुन्दर और भावप्रवण रचना
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 18 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना सखी।
ReplyDeleteI am really happy to say it’s an interesting post to read APJ Abdul Kalam Quotes in Hindi this is a really awesome and i hope in future you will share information like this with us
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteएक एहसास अनछुआ सा
ReplyDeleteअदृश्य से गगन को
आशा से निहारता,
शशि की अभिलाषा में
विरह में जलता
कितनी सदियों
यूं मयंक के मय में
उलझा रहेगा
इसी एहसास में
जीता मरता रहेगा,
उतरती रहेगी कब तक
शांत झील में शाम की उदासियाँ।.. वाह!उत्क़ष्ट अभिव्यक्ति आदरणीया दीदी.
सादर
विरह में जलता
ReplyDeleteकितनी सदियों
यूं मयंक के मय में
उलझा रहेगा
इसी एहसास में
जीता मरता रहेगा,
उतरती रहेगी कब तक
शांत झील में शाम की उदासियाँ
बहुत ही लाजवाब अद्भुत....
वाह!!!!
Lajwab likha hai apne in motivational quotes in Hindi ASha krta hu ki aap bahavishya me bhi likhet rahenge
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