जीवन अवसाद, प्रसन्नता
कदम बढते गये
बन राह के सांझेदार ।
मंजिल का कोई
ठिकाना ना पड़ाव ।
उलझती सुलझती रही
मन लताऐं बहकी सी।
लिपटी रही सोचों के
विराट वृक्षों से संगिनी सी।
आशा निराशा में
उगता ड़ूबता भावों का सूरज।
हताशा अरु उल्लास के
हिन्डोले में झूलता मन।
अवसाद और प्रसन्नता में
अकुलाता भटकता ।
कभी पूनम का चाँद
कभी गहरी काली रात।
कुछ सौगातें
कुछ हाथों से फिसलता आज।
नर्गिस सा बेनूरी पर रोता
खुशबू पर इतराता जीवन।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
कदम बढते गये
बन राह के सांझेदार ।
मंजिल का कोई
ठिकाना ना पड़ाव ।
उलझती सुलझती रही
मन लताऐं बहकी सी।
लिपटी रही सोचों के
विराट वृक्षों से संगिनी सी।
आशा निराशा में
उगता ड़ूबता भावों का सूरज।
हताशा अरु उल्लास के
हिन्डोले में झूलता मन।
अवसाद और प्रसन्नता में
अकुलाता भटकता ।
कभी पूनम का चाँद
कभी गहरी काली रात।
कुछ सौगातें
कुछ हाथों से फिसलता आज।
नर्गिस सा बेनूरी पर रोता
खुशबू पर इतराता जीवन।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
वाह!यह पथ परिवर्तनों की परिक्रमा!
ReplyDeleteकभी पूनम का चाँद
ReplyDeleteकभी गहरी काली रात।
कुछ सौगातें
कुछ हाथों से फिसलता आज।
नर्गिस सा बेनूरी पर रोता
खुशबू पर इतराता जीवन।। खूबसूरत रचना सखी 👌
वाह!!कुसुम जी ,क्या बात है ,बहुत खूब!
ReplyDeleteहताशा अरु उल्लास के
ReplyDeleteहिन्डोले में झूलता मन।
अवसाद और प्रसन्नता में
अकुलाता भटकता ।
कभी पूनम का चाँद
कभी गहरी काली रात।....
चाँद ज्यों मन की सोच अरु गति..उसकी कलाएं और हमारा जीवन.. कभी अवसाद के पल कभी प्रसन्नता का क्षण...
बढ़िया सुंदर रचना
कदम बढते गये
ReplyDeleteबन राह के सांझेदार ।
मंजिल का कोई
ठिकाना ना पड़ाव ।
मर्मस्पर्शी सृजन कुसुम जी ,सादर नमन