Wednesday, 6 May 2020

साथ

साथ

कल्पना ये कल्पना है
आपके बिन सब अधूरी।
चाँद तक सीढ़ी बँधेगी
मखमली सी आस पूरी।।

संग तेरे मुस्कुराते
मोहक रंग भरी होली
आसमान पर डाल झूला
सजती मेघों की डोली।
गगन छुलें हाथ बढ़ाकर
साथ  तेरा  है जरूरी।।

सदा हम तेरे भरोसे
जिंदगी में जब मिले थे।
बाग तुम भंवरा भी तुम
फूल जैसे मन खिले थे ।
खिलखिलाती चाँदनी में
थामकर आशा की धूरी।

पत्थरों पर बैठकर जब
आँखों से सिंधु निहारूँ।
उर्मि की उठती रवानी
नाम तेरा ही पुकारूँ।
कल्पना ये कल्पना है
आपके बिन सब अधूरी।।

           कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

12 comments:

  1. वाह दी खूबसूरत,
    प्रेम और समर्पित भावों की अति सुंदर अभिव्यक्ति।
    आपकी लिखी प्रेम कविताएँ कम ही पढ़ी है दी।

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    1. सस्नेह आभार श्वेता आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला साथ ही सच कहा आपने मैं इस विषय पर न बराबर लिखती हूं ।
      सस्नेह

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  2. बहुत सुन्दर।
    बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामंनाएँ।

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    1. आपको भी आदरणीय हार्दिक शुभकामनाएं।
      सादर आभार।

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  3. गहरी भाव समेटे सुंदर सृजन कुसुम जी, सादर नमस्कार

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    1. नमस्कार कामिनी जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।

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  4. वाह! आदरणीया कुसुम दीदी बहुत ख़ूबसूरत है आपका नवगीत. कल्पनालोक के मनमोहक बिम्ब हृदयस्पर्शी चित्रण के साथ भावों में गूँथे गए हैं.
    बधाई.
    सादर.

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    1. बहुत बहुत आभार अनिता आपकी सुंदर विस्तृत प्रतिक्रिया से रचना के मतंत्व स्पष्ट हुए।
      शानदार टिपण्णी से दिल्ली प्रसन्नता हुई ।
      सस्नेह

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  5. आपको मेरा सादर प्रणाम -
    "सदा हम तेरे भरोसे
    जिंदगी में जब मिले थे।
    बाग तुम भंवरा भी तुम
    फूल जैसे मन खिले थे ।
    खिलखिलाती चाँदनी में
    थामकर आशा की धूरी। "
    सबसे सुंदर लाइन है यह ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका। रचना के हर पहलू पर दृष्टि डाल कर अपने रचना का मान बढ़ाया।
      ब्लाग पर सदा आपका स्वागत है ।
      सादर

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  6. सादर आभार मीना जी ।

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  7. वाह!
    साथ और कल्पना का बेहतरीन संगम नज़र आया आपके नवगीत में।
    काव्य में कल्पनालोक की सैर वाचक को रसमय अनुभूतियों से भर देती है।
    बहुत अच्छा लगा आपका यह नवगीत पढ़कर आदरणीया दीदी।

    सादर नमन।

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