आई साँझ गुनगुनाती
वायु का संदेश आया
झूम कर गाकर सुनाये
आ रहे हैं श्याम घन अब
भूमि की तृष्णा बुझाये।
गा रही है लो दिशाएँ
पाहुना सा कौन आया
व्योम बजती ढोलके जब
राग मेघों ने सुनाया
बाग में लतिका लहर कर
तरु शिखर को चूम आये।
भानु झांका श्याम पट से
एक बदरी छेड़ आई
बूँद बरसी स्वर्ण मुख पर
सात रंगी आभ छाई
साँझ फिर से गुनगुनाती
छाप खुशियों की बनाये।
दिन चला अवसान को अब
घंटियाँ मन्दिर बजी है
दीप जलते देहरी पर
आरती थाली सजी है
आज माता को बुलावा
पात कदली के सजाये।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बहुत सुंदर सृजन🌻
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी ।
Deleteक्या तो आपकी भाषा, क्या आपकी कल्पना-शक्ति और क्या आपका काव्य; सभी ऐसे उत्तम होते हैं कि प्रशंसा करें तो कितनी करें ?
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी लेखन को सदा कुछ विशेष होने का अहसास करवाती है ।
Deleteआत्मीय आभार आपका जितेंद्र जी।
मेरे लेखन को समर्थन देने के लिए।
सादर।
मोहक गीत।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका विश्व मोहन जी।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
सादर।
दिन चला अवसान को अब
ReplyDeleteघंटियाँ मन्दिर बजी है
दीप जलते देहरी पर
आरती थाली सजी है.....🙏
सुन्दर सृजन।।।।।
बहुत बहुत आभार आपका पुरुषोत्तम जी।
Deleteसार्थक शब्दों से उत्साह वर्धन हुआ ।
सादर।
बहुत सुंदर छटा बिखेरती मनमोहती कृति ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर ...
ReplyDeleteप्राकृति की एक मजार खड़ा कर दिया आपकी रचना नें ...
बहुत भावपूर्ण ...
बहुत बहुत आभार आपका नासवा जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसादर।