अटल निश्चय
कालिमा से नित्य लड़ने
आग आलोकित जगाकर
रश्मियों की ओज से फिर
जगमगायेगा चराचर।।
श्याम वर्णी मेघ वाहक
जल लिए दौड़े चले जब
बूंद पाकर सृष्टि सजती
चक्र चलता है यही तब
बीज के हर अंकुरण में
आस जगती दुख भुलाकर।।
बांध कर के ज्ञान गठरी
कौन चल पाया जगत में
बांटने से जो बढ़े धन
सुज्ञ ने गाया जगत में
सुप्त मेधा की किवाड़ीं
सांकलें खोलो हिलाकर।।
कार्य हो आलस्य तजकर
और निश्चय हो अटल जब
रुक न सकता कारवां भी
दूर होते शूल भी तब
सूर्य शशि शिक्षित करें नित
दीप सबके हिय जलाकर।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बेहतरीन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर रचना सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
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ReplyDeleteबहुत बहुत सराहनीय
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आलोक जी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया आपकी।
Deleteसादर।
निश्चय का दीप रौशनी की तरह कालिमा को दूर करता है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है ...
बहुत बहुत आभार आपका नखसवा जी आपकी व्याख्यात्मक टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसादर।
shandar kusham ji sadhuwad
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया।
सादर।
This comment has been removed by the author.
Deleteब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
Deleteसूर्य शशि शिक्षित करें नित
ReplyDeleteदीप सबके हिय जलाकर।।
बहुत ही सुंदर सृजन कुसुम जी,सादर नमन
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी ।
Deleteआपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
सस्नेह।
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