निसर्ग का उलहाना
लगता पहिया तेज चलाकर
देना है कोई उलहाना
तुमने ही तो गूंथा होगा
इस उद्भव का ताना बाना ।।
थामे डोर संतुलन की फिर
जड़ जंगम को नाच नचाते
आधिपत्य उद्गम पर तो क्यों
ऐसा नित नित झोल रचाते
काल चक्र निर्धारित करके
भूल चुके क्या याद दिलाना।
कैसी विपदा भू पर आई
चंहु ओर तांडव की छाया
पैसे वाले अर्थ चुकाकर
झेल रहे हैं अद्भुत माया
अरु निर्धन का हाल बुरा है
बनता रोज काल का दाना।।
कैसे हो विश्वास कर्म पर
एक साथ सब भुगत रहे हैं
ढ़ाल धर्म की टूटी फूटी
मार काल विकराल सहे हैं
सुधा बांट दो अब धरणी पर
शिव को होगा गरल पिलाना।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 14-05-2021) को
"आ चल के तुझे, मैं ले के चलूँ:"(चर्चा अंक-4060) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित है.धन्यवाद
…
"मीना भारद्वाज"
पुनश्च: कृपया चर्चा अंक-4065 पढ़े ।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteमैं उपस्थित हो आई ।
सादर।
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी।
Deleteबहुत ही बेहतरीन। एक-एक शब्द वर्तमान परिस्थिति की व्यथा बता रहे हैं।
ReplyDelete"...
पैसे वाले अर्थ चुकाकर
झेल रहे हैं अद्भुत माया
अरु निर्धन का हाल बुरा है
बनता रोज काल का दाना।।
..."
.......प्रत्येक बुरी परिस्थिति के दौर का यह शाश्वत सत्य है।
सुंदर समर्थन देती प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसादर आभार आपका।
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
Deleteसादर।
बेहतरीन लेखन
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका।
Deleteब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
सस्नेह।
बहुत सुंदर नवगीत सखी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी उत्साहवर्धन करतीं सुंदर प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका रचना सार्थक हुई।
Deleteब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
ReplyDeleteकैसे हो विश्वास कर्म पर
एक साथ सब भुगत रहे हैं
ढ़ाल धर्म की टूटी फूटी
मार काल विकराल सहे हैं
सुधा बांट दो अब धरणी पर
शिव को होगा गरल पिलाना।।
..सच्चाई को दर्शाती यथार्थपूर्ण कृति...
विस्तृत टिप्पणी से रचना को विस्तार मिला जिज्ञासा जी।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका।
सस्नेह।
और अंत में ये अभिलाषा कि---सुधा बांट दो अब धरणी पर
ReplyDeleteशिव को होगा गरल पिलाना।। हृदय से निकली पुकार फिर क्योंकर वे ना सुनेंगे... कुसुम जी..अद्भुत
अलकनंदा जी आपकी भाव भीनी विस्तृत टिप्पणी से रचना का मान बढ़ा और मेरा उत्साह वर्धन हुआ।
ReplyDeleteसस्नेह।