Followers

Tuesday, 25 May 2021

ताँका विधा में चाँद


 ताँका विधा में चाँद


चाँद का नूर

बहका-बहका सा

काली घटा से 

झांकता सकुचाया

मुखर चंद्रिकाएं।


 रजत रश्मि

चपल चंद्रिकाएं

श्यामल घटा

चीर कर अंधेरा

निकला कलानिधि।


ऐ चाँद तुम

बिंदी से चमकते

नभ के भाल 

झांकता गोरी मुख

ज्यों घूंघट आड़ से।


नूर यामा का

बहका-बहका सा

स्याह मेघों से 

निकला सकुचाया

चपल कलानिधि ।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

26 comments:

  1. बेहद खूबसूरत रचना आदरणीया। ।।।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका पुरुषोत्तम जी, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया आपकी।
      सादर।

      Delete
  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (26 -5-21) को "प्यार से पुकार लो" (चर्चा अंक 4077) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी रचना को चर्चा पर रखने के लिए।
      मैं उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

      Delete
  3. बहुत सुन्दर चांद का रूप।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सखी बहुत बहुत आभार आपका।
      ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
      सस्नेह

      Delete
  4. चपल कलानिधि
    अद्भुत प्रयोग...

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी आपकी विशिष्ट टिप्पणी रचना का अनुदान है।
      सादर।

      Delete
  5. मनोहारी वर्णन

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।

      Delete
  6. बहुत सुंदर ! पर आज आज चाँद की इसी सुंदरता पर ''नजर'' लगेगी

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका, सुंदर उत्साहवर्धन ।
      नज़र कुछ देर में उतर जाती है और चाँद कवियों को यूँ ही लुभाता रहता है।
      सादर।

      Delete
  7. बHउत सुंदर रचना, कुसुम दी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सा स्नेह ज्योति बहन।
      आपकी उपस्थिति सदा उत्साहवर्धक होती है।
      सस्नेह।

      Delete
  8. रजत रश्मि

    चपल चंद्रिकाएं

    श्यामल घटा

    चीर कर अंधेरा

    निकला कलानिधि।

    लाजवाब

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      रचना सार्थक हुई।
      सादर।

      Delete
  9. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।

      Delete
  10. कोरोना ने प्राकृतिक सुंदरता की ओर से ध्यान ही हटा दिया सबका। ऐसे में सुंदर शब्द शिल्प के साथ चाँद का ताँका विधा में शब्द चित्र मन प्रफुल्लित कर गया।

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी मीना जी ।
      अभी बस एक भय और उसके परिणाम ही हावी है हर ओर हम कुछ कर नहीं सकते तो कुछ वातावरण को हल्का ही करें। वैसे प्रकृति मेरी पहली पसंद है जो मुझ पर हावी रहती है😂 ।
      बहुत बहुत आभार आपका रचना को आपका स्नेह मिला।
      सस्नेह।

      Delete
  11. जापानी काव्य ताँका ने चांद को आपकी हथेली पर रख द‍िया ताक‍ि आप मनमुताब‍िक खेल सकें तभी तो आपने ल‍िखा- नूर यामा का

    बहका-बहका सा

    स्याह मेघों से

    निकला सकुचाया

    चपल कलानिधि ।---अत्‍यंत सुंदर

    ReplyDelete
  12. वाह! आपकी प्रतिक्रिया अद्भुत है! शब्दों में चमत्कार तो है ही स्नेह भी गूंथ दिया आपने।
    लेखन अपने आयाम पा गया अलकनंदा जी मैं सदा अनुग्रहित रहूंगी।
    सस्नेह।

    ReplyDelete
  13. क्या लिखूं ? आपकी चांद की अलग अलग सुंदर छवि को प्रस्तुत करती कविता तथा अलकनंदा जी की मनमोहिनी प्रशंसा के आगे निःशंद हूं । बेहतरीन रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई कुसुम जी ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपके स्नेहिल शब्दों ने बहुत कुछ लिख दिया जिज्ञासा जी ।
      आपकी टिप्पणियां वैसे भी सदा विस्तृत और रचना पर आपकी गहन दृष्टि डालती है ।
      सस्नेह आभार आपका।

      Delete
  14. नूर यामा का
    बहका-बहका सा
    स्याह मेघों से
    निकला सकुचाया
    चपल कलानिधि
    वाह!!!
    प्रकृति सौन्दर्य को शब्दांकन करने में आपका कोई सानी नहीं कुसुम जी! तिस पर ये ताँका विधा!!!अद्भुत एवं लाजवाब...शत शत नमन आपको एवं आपकी लेखनी को।🙏🙏🙏🙏

    ReplyDelete
  15. चाँद को बाखूबी संजोया है इन ताकों में ...
    बहुत सुन्दर रचना ...

    ReplyDelete