ताँका विधा में चाँद
चाँद का नूर
बहका-बहका सा
काली घटा से
झांकता सकुचाया
मुखर चंद्रिकाएं।
रजत रश्मि
चपल चंद्रिकाएं
श्यामल घटा
चीर कर अंधेरा
निकला कलानिधि।
ऐ चाँद तुम
बिंदी से चमकते
नभ के भाल
झांकता गोरी मुख
ज्यों घूंघट आड़ से।
नूर यामा का
बहका-बहका सा
स्याह मेघों से
निकला सकुचाया
चपल कलानिधि ।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बेहद खूबसूरत रचना आदरणीया। ।।।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका पुरुषोत्तम जी, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया आपकी।
Deleteसादर।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (26 -5-21) को "प्यार से पुकार लो" (चर्चा अंक 4077) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी रचना को चर्चा पर रखने के लिए।
Deleteमैं उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह।
बहुत सुन्दर चांद का रूप।
ReplyDeleteजी सखी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
सस्नेह
चपल कलानिधि
ReplyDeleteअद्भुत प्रयोग...
जी आपकी विशिष्ट टिप्पणी रचना का अनुदान है।
Deleteसादर।
मनोहारी वर्णन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
बहुत सुंदर ! पर आज आज चाँद की इसी सुंदरता पर ''नजर'' लगेगी
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका, सुंदर उत्साहवर्धन ।
Deleteनज़र कुछ देर में उतर जाती है और चाँद कवियों को यूँ ही लुभाता रहता है।
सादर।
बHउत सुंदर रचना, कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह ज्योति बहन।
Deleteआपकी उपस्थिति सदा उत्साहवर्धक होती है।
सस्नेह।
रजत रश्मि
ReplyDeleteचपल चंद्रिकाएं
श्यामल घटा
चीर कर अंधेरा
निकला कलानिधि।
लाजवाब
बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteरचना सार्थक हुई।
सादर।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
Deleteकोरोना ने प्राकृतिक सुंदरता की ओर से ध्यान ही हटा दिया सबका। ऐसे में सुंदर शब्द शिल्प के साथ चाँद का ताँका विधा में शब्द चित्र मन प्रफुल्लित कर गया।
ReplyDeleteजी मीना जी ।
Deleteअभी बस एक भय और उसके परिणाम ही हावी है हर ओर हम कुछ कर नहीं सकते तो कुछ वातावरण को हल्का ही करें। वैसे प्रकृति मेरी पहली पसंद है जो मुझ पर हावी रहती है😂 ।
बहुत बहुत आभार आपका रचना को आपका स्नेह मिला।
सस्नेह।
जापानी काव्य ताँका ने चांद को आपकी हथेली पर रख दिया ताकि आप मनमुताबिक खेल सकें तभी तो आपने लिखा- नूर यामा का
ReplyDeleteबहका-बहका सा
स्याह मेघों से
निकला सकुचाया
चपल कलानिधि ।---अत्यंत सुंदर
वाह! आपकी प्रतिक्रिया अद्भुत है! शब्दों में चमत्कार तो है ही स्नेह भी गूंथ दिया आपने।
ReplyDeleteलेखन अपने आयाम पा गया अलकनंदा जी मैं सदा अनुग्रहित रहूंगी।
सस्नेह।
क्या लिखूं ? आपकी चांद की अलग अलग सुंदर छवि को प्रस्तुत करती कविता तथा अलकनंदा जी की मनमोहिनी प्रशंसा के आगे निःशंद हूं । बेहतरीन रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई कुसुम जी ।
ReplyDeleteआपके स्नेहिल शब्दों ने बहुत कुछ लिख दिया जिज्ञासा जी ।
Deleteआपकी टिप्पणियां वैसे भी सदा विस्तृत और रचना पर आपकी गहन दृष्टि डालती है ।
सस्नेह आभार आपका।
नूर यामा का
ReplyDeleteबहका-बहका सा
स्याह मेघों से
निकला सकुचाया
चपल कलानिधि
वाह!!!
प्रकृति सौन्दर्य को शब्दांकन करने में आपका कोई सानी नहीं कुसुम जी! तिस पर ये ताँका विधा!!!अद्भुत एवं लाजवाब...शत शत नमन आपको एवं आपकी लेखनी को।🙏🙏🙏🙏
चाँद को बाखूबी संजोया है इन ताकों में ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ...