बन रे मन तू चंदन वन
सौरभ का बन अंश-अंश।
कण-कण में सुगंध जिसके
हवा-हवा महक जिसके
चढ़ भाल सजा नारायण के
पोर -पोर शीतल बनके।
बन रे मन तू चंदन वन।
भाव रहे निर्लिप्त सदा
मन वास करे नीलकंठ
नागपाश में हो जकड़े
सुवास रहे सदा आकंठ।
बन रे मन तू चंदन वन ।
मौसम ले जाय पात यदा
रूप भी न चित्तचोर सदा
पर तन की सुरभित आर्द्रता
पीयूष रहे बन साथ सदा।
बन रे मन तू चंदन वन ।
घिस-घिस खुशबू बन लहकूँ
हर जन का ताप संताप हरूँ
तन मन से बन श्री खंड़ रहूँ
दह राख बनूँ फिर भी महकूँ ।।
बन रे मन तू चंदन वन ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
अत्यंत प्रेरक व बेहतरीन रचना आदरणीया कुसुम जी। सादर नमन।।।।।।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका पुरुषोत्तम जी, आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसादर।
वाह, हमेशा की तरह बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी ।
Deleteआपका स्नेह सदा मिलता रहता है मेरे लेखन को, जिससे लेखन को नव उर्जा मिलती है।
सादर।
घिस-घिस खुशबू बन लहकूँ
ReplyDeleteहर जन का ताप संताप हरूँ
तन मन से बन श्री खंड़ रहूँ
दह राख बनूँ फिर भी महकूँ ।।
बन रे मन तू चंदन वन ।।
कुसुम दी, इससे अच्छी ख्वाहिश तो कोई हो ही नही सकती!बहुत सुंदर।
बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteआपके मन के कोमल भावों ने रचना के भावों को समर्थन देकर रचना को सार्थकता दी है । बहुत बहुत आभार आपका सस्नेह ।
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना । वाह ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सादर।
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका गगन जी ।
Deleteलेखन सार्थक हुआ। आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से।
सादर।
जीवंतता का सुंदर पर्चे कराती अनमोल रचना ,सादर शुभकामनाएं कुसुम जी ।
ReplyDeleteप्रिय जिज्ञासा जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना और भी मुखरित हुई ।
Deleteसस्नेह आभार आपका।
मौसम ले जाय पात यदा
ReplyDeleteरूप भी न चित्तचोर सदा
पर तन की सुरभित आर्द्रता
पीयूष रहे बन साथ सदा।---बहुत शानदार पंक्तियां
बहुत बहुत आभार आपका संदीप जी ,
Deleteसुंदर मन के भाव आपके, कोमल भावों पर सहज आकर्षण
रचना को सार्थकता देता है ।
सदा विशिष्ट दृष्टि से समालोचन करते रहिये।
सादर।
जी हां कुसुम जी। मन को ऐसा ही बनाने का प्रयास हमें करना चाहिए। बहुत सुंदर रचना है यह आपकी। अभिनंदन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका जितेंद्र जी, रचना के भावों पर समर्थन और भावों की सार्थकता पर आपकी प्रतिक्रिया से रचना को संबल मिला।
Deleteसादर।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।सादर।
Deleteबहुत सुंदर आध्यात्म और जीवन के सारांश को समेटे हुए अदभुत रचना कुसुम जी... वाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रतिक्रिया आपकी, रचना में निहित भावों पर विशिष्ट नज़र रचना को प्रवाह देती है सखी जी ।
Deleteहृदय से आभार आपका।
सस्नेह।
बन रे मन तू चंदन वन
ReplyDeleteसौरभ का बन अंश-अंश।
बहुत सुंदर रचना
जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteरचना सार्थक हुई।
सादर।
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका।
Deleteब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
सस्नेह आभार आपका मीना जी।
ReplyDeleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
वाह!सराहनीय सृजन दी।
ReplyDeleteबन रे मन तू चंदन वन...हर बंद बेहतरीन 👌