किरणों का क्रदंन
तारों की चुनरी अब सिमटी
बीती रात सुहानी सी।
कलरव से नीरव सब टूटा
जुगनू द्युति खिसियानी सी।
ओढ़ा रेशम का पट सुंदर
सुख सपने में खोई थी
श्यामल खटिया चांदी बिछती
आलस बांधे सोई थी
चंचल किरणों का क्रदंन सुन
व्याकुल भोर पुरानी सी।।
प्राची मुख पर लाली उतरी
नीलाम्बर नीलम पहने
ओस कणों से मुख धोकर के
पौध पहनते हैं गहने
चुगरमुगर कर चिड़िया चहकी
करती है अगवानी सी।।
वृक्ष विवर में घुग्घू सोते
बातें जैसे ज्ञानी हो
दिन सोने में बीता फिर भी
साधु बने बकध्यानी हो
डींगें मारे ऐसे जैसे
कहते झूठ कहानी सी।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
वाह! बहुत सुंदर।
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका, उत्साहवर्धन हुआ।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी।
Deleteसादर।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२७-०४-२०२१) को 'चुप्पियां दरवाजा बंद कर रहीं '(चर्चा अंक-४०५०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार आपका चर्चा में स्थान देने के लिए।
Deleteचर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
आपकी काव्य-प्रतिभा का क्या कहना कुसुम जी। प्रत्येक कविता अद्वितीय होती है। एक एक शब्द आनंद से भर देता है।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका जितेंद्र जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई, लेखन को नया संबल मिला ।
Deleteसादर।
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी।
Deleteउत्साहवर्धन हुआ।
सस्नेह।
दिन सोने में बीता फिर भी
ReplyDeleteसाधु बने बकध्यानी हो
डींगें मारे ऐसे जैसे
कहते झूठ कहानी सी।।
बहुत खूब,यही दौर है इन दिनों ,सादर नमन कुसुम जी
आपकी सुंदर प्रतिक्रिया से सदा लेखन को नव उर्जा मिलती है कामिनी जी।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका।
सस्नेह।
बहुत ख़ूब
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर भावों से सजी सुंदर कविता ।
ReplyDeleteहृदय तल से आभार जिज्ञासा जी।
Deleteआपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
सस्नेह।
बहुत सुन्दर और गहरी लगी आपकी रचना
ReplyDeleteआभार
रचना पसंद आई लेखन सार्थक हुआ।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका।
ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
सादर।
ओढ़ा रेशम का पट सुंदर
ReplyDeleteसुख सपने में खोई थी
श्यामल खटिया चांदी बिछती
आलस बांधे सोई थी
चंचल किरणों का क्रदंन सुन
व्याकुल भोर पुरानी सी।।
वाह!!!
बहुत ही खूबसूरत बिम्बों से सजी मनमोहक लाजवाब कृति।
सस्नेह आभार आपका सुधा जी।
Deleteआपकी टिप्पणी मेरे लेखन लिए सदा उर्जा काम करती है।
सुंदर व्याख्यात्मक टिप्पणी के लिए हृदय से आभार।
सस्नेह।
काव्य की सुरीली रस धार बहती है जैसे...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना है ...
बहुत बहुत आभार आपका नासवा जी,आपकी सुंदर प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसादर।
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
ReplyDeleteसादर।
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
ReplyDeleteसादर।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ३१ दिसंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
शुभकामनाएं..
ReplyDeleteसादर नमन
प्राची मुख पर लाली उतरी
ReplyDeleteनीलाम्बर नीलम पहने
ओस कणों से मुख धोकर के
पौध पहनते हैं गहने
चुगरमुगर कर चिड़िया चहकी
करती है अगवानी सी।।
प्रकृति के सौंदर्य को अद्भुत शब्द दिए हैं । सुंदर सृजन