नटनागर
हे जादूगर हे नट नागर कैसी मोहनी डारे तू,
मैं ग्वालन एक भोरी सीधी पहुँचो हुवो कलंदर तू।
बंसी धुन में कौन सो कामण मोरे मन को बाधें तू,
जग को कोई काज न सूझे मोरो चैन चुरायो तू।
मैं बस तूझको ही निहारूँ जग को खैवन हारो तू,
मैं बावरी बंसी धुन की अपनी धुन में खोयो तू।
मैं एक नारी बेचारी पशु पाखिन को प्यारो तू,
काज छोड़ सब विधि आई एक नजर न डारे तू।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'।
हमेशा की तरह सुंदर रचना आदरणीया कुसुम जी। ।।।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका पुरुषोत्तम जी।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
सादर।
वाह, बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी।
Deleteउत्साहवर्धन हुआ।
सादर।
बहुत सुन्दर गीतिका।।
ReplyDeleteसादर आभार आपका आदरणीय। उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसादर।
बहुत बहुत सुन्दर ।
ReplyDelete।
बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
Deleteउत्साहवर्धन हुआ।
सादर।
वाह कुसुम जी, आज तो आपने हमारे कान्हा पर ही लिख दिया..अत्यंत सुंदर रचना
ReplyDeleteये सही कहीं आपने अलकनंदा जी, आपके कान्हा जी,मेरी एक सखी भी दावा करती हैं उनके कान्हा जी, अब कान्हाजी मुसीबत में आने वाले हैं किसके हैं ,😂 ।
Deleteसस्नेह आभार सखी जी।
मैं कहूगी आप मेरे हो तो फिर कान्हा किसके हुए।
सच कहूं तो बहुत लिखा है कान्हाजी पर बस पोस्ट बहुत कम की है।
सस्नेह आभार।
बहुत सुंदर गीत,कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteसस्नेह।
बहुत ही सुंदर रचना का सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सादर।
बेहद सुंदर
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteरचना सार्थक हुई।
सादर।
आपकी तो सभी काव्य-रचनाएं मन में उतर जाती हैं कुसुम जी । यह भक्ति-रचना भी भावभीनी है।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका जितेंद्र जी, आपकी प्रतिक्रिया सदा मोहक उत्साहवर्धक होती है जो रचना को नव उर्जा देती है ।
Deleteसादर।
भक्तिभाव से ओतप्रोत सुंदर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteउत्साहवर्धन हुआ ।
सस्नेह।
बंसी धुन में कौन सो कामण मोरे मन को बाधें तू,
ReplyDeleteजग को कोई काज न सूझे मोरो चैन चुरायो तू।
बहुत कोमल...
बहुत मधुर भावनाएं...
बहुत सुंदर रचना...🌹🙏🌹
पसंद आईं आपको लेखन सार्थक हुआ।
Deleteशरद जी, कान्हा तो स्वयं ही मधुर कुछ रचवा देते हैं ।
सस्नेह आभार आपका।
आज तो कान्हा जी पर आप मोहित हो गईं कुसुम जी,कन्हैया जी का चरित्र ही ऐसा है, कि मोहित हुए कोई रह नही सकता,सुधार भावों भरे सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं आपको ।
ReplyDeleteसृजन पर आपकी मोहक प्रतिक्रिया सृजन में नई उर्जा भर गया जिज्ञासा जी!
Deleteवैसे सही है कान्हाजी कामण करते ही हैं कौन बच पाया है उनके जादू से।
काफी लिखा है कान्हाजी पर हम तीन सखियां सिर्फ बातचीत में कान्हाजी पर आसु सृजन करते रहते थे घंटों तक ।
सस्नेह आभार आपको सृजन पसंद आया।
वाह!बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय कुसुम दी जी।
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार आपका प्यारी बहना।
Deleteसस्नेह।
हे जादूगर हे नट नागर कैसी मोहनी डारे तू,
ReplyDeleteमैं ग्वालन एक भोरी सीधी पहुँचो हुवो कलंदर तू।
कृष्ण के रंगो में सराबोर बहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन कुसुम जी ,सादर नमन आपको
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी , चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी।
ReplyDeleteढेर सा आभार।
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी।
ReplyDeleteकृष्ण तो सब रंगों पर हावी हो जाता है,सब को अपने में समाहित कर लेता है।
आपकी उर्जावान प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
सस्नेह।
आप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
ReplyDeleteकान्हा से भाव मनुहार चलता रहे तो भी जीवन में आनंद रहता है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कल्पना ...
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