इल्ज़ाम ढूंढ़ते हो !
ये क्या कि पत्थरों के शहर में
शीशे का आशियाना ढूंढ़ते हो!
आदमियत का पता तक नही
गज़ब करते हो इन्सान ढूंढ़ते हो !
यहाँ पता नही किसी नियत का
ये क्या कि आप ईमान ढूंढ़ते हो !
आईनों में भी दगा भर गया यहाँ
अब क्यों सही पहचान ढूंढ़ते हो !
घरौदें रेत के बिखरने ही तो थे
तूफ़ानों पर क्यूँ इल्ज़ाम ढूंढ़ते हो !
जहाँ बालपन भी बुड्ढा हो गया
वहाँ मासुमियत की पनाह ढूंढ़ते हो !
भगवान अब महलों में सज़ के रह गये
क्यों गलियों में उन्हें सरे आम ढूंढ़ते हो।
कुसुम कोठारी "प्रज्ञा "
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-०४-२०२१) को ' खून में है गिरोह हो जाना ' (चर्चा अंक-४०२५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 02 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteभगवान अब महलों में सज़ के रह गये
ReplyDeleteक्यों गलियों में उन्हें सरे आम ढूंढ़ते हो।
वाह लाजवाब सृजन सखी 👌👌
बहुत अच्छा लिखा है आपने...
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा
ReplyDeleteयथार्थपूर्ण रचना, आज के दौर में बदलती मानसिकता पर गहरी चोट कर गई ।
ReplyDeleteये क्या कि पत्थरों के शहर में
ReplyDeleteशीशे का आशियाना ढूंढ़ते हो!
आदमियत का पता तक नही
गज़ब करते हो इन्सान ढूंढ़ते हो !
वाह!! बहुत खूब !! अति सुन्दर !!
आपकी तो प्रत्येक रचना सबसे न्यारी होती है कुसुम जी । यह भी अपवाद नहीं ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर सराहनीय रचना ।
ReplyDeleteआदमियत का पता तक नही
ReplyDeleteगज़ब करते हो इन्सान ढूंढ़ते हो !
सच कह दिया
हर शेर अपने आप में मुक्कमल
''भगवान अब महलों में सज़ के रह गए........
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर
बहुत बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसुबह 9 बजे ही इस रचना को पढ़ लिया था, जैसे ही टिप्पणी करने जा रही थी, किसी ने आवाज दी और काम मे व्यस्त हों गई,अब फुर्सत मिली लेकिन सोचा न था कि आप मुझसे आगे हो जायेंगी, खरगोश और कछुये की कहानी याद आ गई,मेरी चाल देखकर कुसुम जी,
ReplyDeleteजैसा सभी ने कहा रचना बेहद खूबसूरत है , हर एक शेर दमदार, बहुत सारी बधाईयाँ इस शानदार पोस्ट के लिए
घरौदें रेत के बिखरने ही तो थे
ReplyDeleteतूफ़ानों पर क्यूँ इल्ज़ाम ढूंढ़ते हो !
जहाँ बालपन भी बुड्ढा हो गया
वहाँ मासुमियत की पनाह ढूंढ़ते हो !
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब गजल....
एक से बढ़कर एक शेर।