गाँव से पलायन बेटे
फागुन के महीने में आम के पेड़ मंजरियों या "मौरों" से लद जाते हैं, जिनकी मीठी गंध से दिशाएँ भर जाती हैं । चैत के आरंभ में मौर झड़ने लग जाते हैं और 'सरसई' (सरसों के बराबर फल) दिखने लगते हैं । जब कच्चे फल बेर के बराबर हो जाते हैं, तब वे 'टिकोरे' कहलाते है । जब वे पूरे बढ़ जाते हैं और उनमें जाली पड़ने लगती है, तब उन्हे 'अंबिया' कहते हैं।
अंबिया पक कर आम जिसे रसाल कहते हैं।
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चंदन सा बिखरा हवाओं में
मौरों की खुशबू है फिजाओं में
ये किसीके आने का संगीत है
या मौसम का रुनझुन गीत है।
मन की आस फिर जग गई
नभ पर अनुगूँज बिखर गई
होले से मदमाता शैशव आया
आम द्रुम सरसई से सरस आया ।
देखो टिकोरे से भर झूमी डालियाँ
कहने लगे सब खूब आयेगी अंबिया
रसाल की गांव मेंं होगी भरमार
इस बार मेले लगेंगे होगी बहार।
लौट आवो एक बार फिर घर द्वारे
सारा परिवार खड़ा है आँखें पसारे
चलो माना शहर में खुश हो तुम
पर बिन तुम्हारे यहाँ खुशियाँ हैं गुम।
कुसुम कोठारी "प्रज्ञा"
देखो टिकोरे से भर झूमी डालियाँ
ReplyDeleteकहने लगे सब खूब आयेगी अंबिया
रसाल की गांव मेंं होगी भरमार
इस बार मेले लगेंगे होगी बहार।
लौट आवो एक बार फिर घर द्वारे
सारा परिवार खड़ा है आँखें पसारे
चलो माना शहर में खुश हो तुम
पर बिन तुम्हारे यहाँ खुशियाँ हैं गुम।
वाह ,बहुत ही सुंदर कुसुम जी, आम के सभी दौर के बारे मे भी कितनी खूबसूरती से बताया है आपने,हार्दिक बधाई हो, सादर नमन
बहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी।
Deleteआपकी सुंदर मनभावन प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
सस्नेह।
बहुत सार्थक और सुन्दर रचना।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
वाह, बहुत सुंदर।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
उत्साहवर्धन हुआ।
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका लेखन को समर्थन देती प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
Deleteसादर।
खूबसूरत भावपूर्ण अभिव्यक्ति । इतनी सरस रचना की लग रहा आम का रस ही टपक रहा
ReplyDeleteवाह संगीता जी नामारूप सरगम सा बिखेरती सुंदर टिप्पणी।
Deleteमन प्रसन्न हुआ।
सदा स्नेह बनाए रखें।
सस्नेह आभार।
लौट आवो एक बार फिर घर द्वारे
ReplyDeleteसारा परिवार खड़ा है आँखें पसारे
बहुत सुन्दर
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteहृदय स्पर्शी उद्गार उठाये आपने लेखन सार्थक हुआ ।
सादर।
आम पर बहुत ही सुंदर रचना, कुसुम दी।
ReplyDeleteढेर सा स्नेह आभार ज्योति बहना।
Deleteआपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
सस्नेह।
भावपूर्ण अभिव्यक्ति मैम
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
आपकी उपस्थिति हमारा संबल है ।
सस्नेह।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरुवार (०८-०४-२०२१) को (चर्चा अंक-४०३०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
बहुत बहुत आभार आपका, चर्चा मंच पर रचना को रखने के लिए।
Deleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह।
ReplyDeleteमन की आस फिर जग गई
नभ पर अनुगूँज बिखर गई
होले से मदमाता शैशव आया
आम द्रुम सरसई से सरस आया ।
वाह बेहद खूबसूरत रचना 👌👌
बहुत बहुत आभार आपका सखी।
Deleteआपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
सस्नेह।
कुसुम जी,जब भी ऐसे विषय पर कुछ पढ़ती हूं, तो लगता है,जैसे मेरा अपना मन कुछ गुनगुना रहा है,आम जैसे विषय बड़े मोहक हैं,मेरे गाँव में आम का बहुत बड़ा बगीचा था बिलकुल दरवाजे पर ही,हमने गर्मी की छुट्टियों में बहुत मजे किए उस बागीचे में,उसी की याद में मैने अपने घर लखनऊ में एक आम का पेड़ लगा रखा है,और लगता है वो मेरा साथी है,जब उसके पास जाती हूं, उसे प्यार जरूर करती हूं,लगता है वो हँसकर एक मीठा आम मुझे पकड़ा देगा । मैंने भी उसके ऊपर कुछ लिखा हुआ है, आपसे प्रेरणा लेकर उस कविता को एक दिन जरूर आपको पढ़वाऊंगी और आपकी राय लूंगी ।
ReplyDelete.....आपकी रचना बहुत अच्छी लगी ।सादर शुभकामनाएं ।
बहुत अच्छा लगा ये पढ़कर जिज्ञासा जी कि मेरे लेखन से आपकी पुरानी मीठी स्मृतियों ने मन को आनंदित किया।
ReplyDeleteऔर सच भी है कि कुछ चीजें व्यक्ति के मानष पटक पर सदा सुखद सी छाई रहती है।
आपको रचना पसंद आई मन प्रसन्न हुआ बहुत बहुत आभार आपका आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया से रचना को नये आयाम मिले।
आपकी रचना का इंतजार रहेगा शीघ्र पढ़ने का ।
सस्नेह।