आधुनिकता
कितना पीसा कूटा लेकिन
तेल बचा है राई में।
बहुओं में तो खोट भरी है
गुण दिखते बस जाई में।
हंस बने फिरते हैं कागा
जाने कितने पाप किये
सौ मुसटा गटक बिलाई
माला फेरे जाप किये
थैला जब रुपयों से भरता
खोट दिखाता पाई में।।
पछुवाँ आँधी में सब उड़ते
हवा मोल जीवन सस्ता
बैग कांध पर अब लटकी है
गया तेल लेने बस्ता
अचकन जामा छोड़ छाड़ कर
दुल्हा सजता टाई में।।
पर को धोखा देकर देखो
सीढ़ी एक बनाते हैं
बढ़ी चढ़ी बातों के लच्छे
रेशम बाँध सुनाते हैं
परिवर्तन की चकाचौंध ने
आज धकेला खाई में।
गुण ग्राही संस्कार तालिका
आज टँगी है खूटी पर
औषध के व्यापार बढे हैं
ताले जड़ते बूटी पर
सूरज डूबा क्षीर निधी में
साँझ घिरी कलझाई में।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
(सूरज प्रतीक है=सामर्थ्यवान का, क्षीर निधी= विलासिता का साँझ =आम व्यक्ति)
सत्य,सुंदर,सटीक पंक्तियाँ 🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका प्रिय बहना, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह ।
बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति 👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सादर।
वाह!गज़ब का नवगीत है आदरणीय दी।
ReplyDeleteकितना पीसा कूटा लेकिन
तेल बचा है राई में।
बहुओं में तो खोट भरी है
गुण दिखते बस जाई में।..वाह!👌
वाह! उत्साहवर्धन करती सार्थक प्रतिक्रिया से लेखन मुखरित हुआ।
Deleteसस्नेह।
कितना पीसा कूटा लेकिन
ReplyDeleteतेल बचा है राई में।
बहुओं में तो खोट भरी है
गुण दिखते बस जाई में।
कड़वी सच्चाई व्यक्त करती रचना, कुसुम दी।
बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteआपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
सस्नेह।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ अप्रैल २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार आपका पांच पर रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteमैं उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह।
बहुत सही बात
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर नवगीत सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी, उर्जा देती प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह।
गुण ग्राही संस्कार तालिका
ReplyDeleteआज टँगी है खूटी पर
औषध के व्यापार बढे हैं
ताले जड़ते बूटी पर
सूरज डूबा क्षीर निधी में
साँझ घिरी कलझाई में।।----बहुत अच्छी पंक्तियां हैं
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteआपकी टिप्पणी से लेखन को नव उर्जा मिली।
सादर।
आदरणीया मैम , हमारे समाज में गिरते हुए जीवन मूल्यों और विरोधाभासों पर बहुत ही सशक्त प्रहार। सच हमारे गिरते हुए जीवन-मूल्य और हमारा अपनी भारतीय संस्कृति को भूलना ही हमारे पतन का कारण है और शायद आज जिस स्थिति में हम लोग हैं, उसका भी कारण कुछ हद तक हम खुद ही हैं । हृदय से आभार इस सशक्त और सुंदर रचना के लिए जो हमारे मन को झकझोर कर हमें सोचने पर विवश करती है व आपको प्रणाम।
ReplyDeleteआपकी सुंदर व्याख्यात्मक टिप्पणी से रचना मुखरित हुई , लेखन में नव उर्जा का संचार हुआ।
Deleteसटीक सुंदर टिप्पणी।
सस्नेह।
गुण ग्राही संस्कार तालिका
ReplyDeleteआज टँगी है खूटी पर
औषध के व्यापार बढे हैं
ताले जड़ते बूटी पर
सटीक और यथार्थ चित्रण कुसुम जी,सादर नमन
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
Deleteसुंदर प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
इन दिनों आपकी कविताएं फ़ेसबुक पर भी पढ़ लेता हूं कुसुम जी। लेकिन ये तो ऐसी होती हैं कि चाहे जितनी बार पढ़ लिया जाए, जी ही नहीं भरता। आपके द्वारा चुने गए विषय तो सामयिक होते ही हैं, आपकी भाषा एवं सृजन-शैली भी अद्वितीय है।
ReplyDeleteजी आपकी उपस्थिति को नमन,
Deleteआपकी प्रतिक्रिया सदा मिलती है जो उत्साहवर्धक तो होती ही है, लेखन में नव उर्जा का संचार करती है।
सादर आभार।
तीखे तीखे बाण चले हैं
ReplyDeleteऔर हुए हैं तंज़
खूब सुनाया सबको छक कर
मिले सभी को पंच ( मुक्के ) :) :) :)
बहुत बढ़िया कुसुम जी ... खरी खरी ...
क्या बात है, बात से बात निकालना कोई आप से सीखें।
Deleteमन प्रसन्न हुआ मोहक अंदाज सराहना का ।
सस्नेह आभार आपका संगीता जी।
पछुवाँ आँधी में सब उड़ते
ReplyDeleteहवा मोल जीवन सस्ता
बैग कांध पर अब लटकी है
गया तेल लेने बस्ता
अचकन जामा छोड़ छाड़ कर
दुल्हा सजता टाई में।।
वाह!!!
धारदार व्यंग एवं कटाक्ष के साथ आज की कटु सत्य को बयां करता लाजवाब नवगीत।
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी, आपकी प्रतिक्रिया का सदा इंतजार रहता है,आपकी मोहक प्रतिक्रिया सदा मेरे सृजन का उपहार है।
Deleteसस्नेह।
बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
ReplyDeleteमैं उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह।
बहुत बहुत आभार आपका, उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए।
ReplyDeleteसादर।
ReplyDeleteपर को धोखा देकर देखो
सीढ़ी एक बनाते हैं
बढ़ी चढ़ी बातों के लच्छे
रेशम बाँध सुनाते हैं
परिवर्तन की चकाचौंध ने
आज धकेला खाई में।..आज के संदर्भ में बिलकुल सटीक पंक्तियां, पूरी रचना ही आज के परिदृश्य की अवचेतना को खंगाल रही है,बहुत सुंदर नवगीत, बहुत बधाई आपको कुसुम जी ।