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Wednesday, 21 April 2021

आधुनिकता


 आधुनिकता


कितना पीसा कूटा लेकिन 

तेल बचा है राई में।

बहुओं में तो खोट भरी है

गुण दिखते बस जाई में।


हंस बने फिरते हैं कागा

जाने कितने पाप किये

सौ मुसटा गटक बिलाई

माला फेरे जाप किये

थैला जब रुपयों से भरता

खोट दिखाता पाई में।।


पछुवाँ आँधी में सब उड़ते

हवा मोल  जीवन सस्ता

बैग कांध पर अब लटकी है

गया तेल  लेने बस्ता

अचकन जामा छोड़ छाड़ कर 

दुल्हा सजता  टाई में।।


पर को धोखा देकर देखो

सीढ़ी एक बनाते हैं

बढ़ी चढ़ी बातों के लच्छे

रेशम बाँध सुनाते हैं

परिवर्तन की चकाचौंध ने

आज धकेला खाई में।


गुण ग्राही संस्कार तालिका

आज टँगी है खूटी पर

औषध के व्यापार बढे हैं

ताले जड़ते बूटी पर

सूरज डूबा क्षीर निधी में

साँझ घिरी कलझाई में।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा' 


(सूरज प्रतीक है=सामर्थ्यवान का, क्षीर निधी= विलासिता का साँझ =आम व्यक्ति)

30 comments:

  1. सत्य,सुंदर,सटीक पंक्तियाँ 🙏

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    1. बहुत बहुत आभार आपका प्रिय बहना, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सस्नेह ।

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  2. बहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति 👌👌

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी।
      सस्नेह।

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  3. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  4. वाह!गज़ब का नवगीत है आदरणीय दी।
    कितना पीसा कूटा लेकिन

    तेल बचा है राई में।

    बहुओं में तो खोट भरी है

    गुण दिखते बस जाई में।..वाह!👌

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    1. वाह! उत्साहवर्धन करती सार्थक प्रतिक्रिया से लेखन मुखरित हुआ।
      सस्नेह।

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  5. कितना पीसा कूटा लेकिन

    तेल बचा है राई में।

    बहुओं में तो खोट भरी है

    गुण दिखते बस जाई में।
    कड़वी सच्चाई व्यक्त करती रचना, कुसुम दी।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
      आपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ अप्रैल २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका पांच पर रचना को शामिल करने के लिए।
      मैं उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

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  7. बहुत ही सुन्दर नवगीत सखी

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी, उर्जा देती प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  8. गुण ग्राही संस्कार तालिका

    आज टँगी है खूटी पर

    औषध के व्यापार बढे हैं

    ताले जड़ते बूटी पर

    सूरज डूबा क्षीर निधी में

    साँझ घिरी कलझाई में।।----बहुत अच्छी पंक्तियां हैं

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      आपकी टिप्पणी से लेखन को नव उर्जा मिली।
      सादर।

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  9. आदरणीया मैम , हमारे समाज में गिरते हुए जीवन मूल्यों और विरोधाभासों पर बहुत ही सशक्त प्रहार। सच हमारे गिरते हुए जीवन-मूल्य और हमारा अपनी भारतीय संस्कृति को भूलना ही हमारे पतन का कारण है और शायद आज जिस स्थिति में हम लोग हैं, उसका भी कारण कुछ हद तक हम खुद ही हैं । हृदय से आभार इस सशक्त और सुंदर रचना के लिए जो हमारे मन को झकझोर कर हमें सोचने पर विवश करती है व आपको प्रणाम।

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    1. आपकी सुंदर व्याख्यात्मक टिप्पणी से रचना मुखरित हुई , लेखन में नव उर्जा का संचार हुआ।
      सटीक सुंदर टिप्पणी।
      सस्नेह।

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  10. गुण ग्राही संस्कार तालिका

    आज टँगी है खूटी पर

    औषध के व्यापार बढे हैं

    ताले जड़ते बूटी पर

    सटीक और यथार्थ चित्रण कुसुम जी,सादर नमन

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
      सुंदर प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  11. इन दिनों आपकी कविताएं फ़ेसबुक पर भी पढ़ लेता हूं कुसुम जी। लेकिन ये तो ऐसी होती हैं कि चाहे जितनी बार पढ़ लिया जाए, जी ही नहीं भरता। आपके द्वारा चुने गए विषय तो सामयिक होते ही हैं, आपकी भाषा एवं सृजन-शैली भी अद्वितीय है।

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    1. जी आपकी उपस्थिति को नमन,
      आपकी प्रतिक्रिया सदा मिलती है जो उत्साहवर्धक तो होती ही है, लेखन में नव उर्जा का संचार करती है।
      सादर आभार।

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  12. तीखे तीखे बाण चले हैं
    और हुए हैं तंज़
    खूब सुनाया सबको छक कर
    मिले सभी को पंच ( मुक्के ) :) :) :)

    बहुत बढ़िया कुसुम जी ... खरी खरी ...

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    1. क्या बात है, बात से बात निकालना कोई आप से सीखें।
      मन प्रसन्न हुआ मोहक अंदाज सराहना का ।
      सस्नेह आभार आपका संगीता जी।

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  13. पछुवाँ आँधी में सब उड़ते
    हवा मोल जीवन सस्ता
    बैग कांध पर अब लटकी है
    गया तेल लेने बस्ता
    अचकन जामा छोड़ छाड़ कर
    दुल्हा सजता टाई में।।
    वाह!!!
    धारदार व्यंग एवं कटाक्ष के साथ आज की कटु सत्य को बयां करता लाजवाब नवगीत।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी, आपकी प्रतिक्रिया का सदा इंतजार रहता है,आपकी मोहक प्रतिक्रिया सदा मेरे सृजन का उपहार है।
      सस्नेह।

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  14. बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
    मैं उपस्थित रहूंगी।
    सादर सस्नेह।

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  15. बहुत बहुत आभार आपका, उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया के लिए।
    सादर।

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  16. पर को धोखा देकर देखो

    सीढ़ी एक बनाते हैं

    बढ़ी चढ़ी बातों के लच्छे

    रेशम बाँध सुनाते हैं

    परिवर्तन की चकाचौंध ने

    आज धकेला खाई में।..आज के संदर्भ में बिलकुल सटीक पंक्तियां, पूरी रचना ही आज के परिदृश्य की अवचेतना को खंगाल रही है,बहुत सुंदर नवगीत, बहुत बधाई आपको कुसुम जी ।

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