Saturday, 1 May 2021

आई साँझ गुनगुनाती


 आई साँझ गुनगुनाती


वायु का संदेश आया 

झूम कर गाकर सुनाये

आ रहे हैं श्याम घन अब

भूमि की तृष्णा बुझाये।


गा रही है लो दिशाएँ

पाहुना सा कौन आया

व्योम बजती ढोलके जब

राग मेघों ने सुनाया

बाग में लतिका लहर कर

तरु शिखर को चूम आये।


भानु झांका श्याम पट से

एक बदरी छेड़ आई

बूँद बरसी स्वर्ण मुख पर

सात रंगी आभ छाई

साँझ फिर से गुनगुनाती

छाप खुशियों की बनाये।


दिन चला अवसान को अब

घंटियाँ मन्दिर बजी है

दीप जलते देहरी पर

आरती थाली सजी है

आज माता को बुलावा

पात कदली के सजाये।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

12 comments:

  1. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी ।

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  2. क्या तो आपकी भाषा, क्या आपकी कल्पना-शक्ति और क्या आपका काव्य; सभी ऐसे उत्तम होते हैं कि प्रशंसा करें तो कितनी करें ?

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    1. आपकी टिप्पणी लेखन को सदा कुछ विशेष होने का अहसास करवाती है ।
      आत्मीय आभार आपका जितेंद्र जी।
      मेरे लेखन को समर्थन देने के लिए।
      सादर।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका विश्व मोहन जी।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
      सादर।

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  4. दिन चला अवसान को अब
    घंटियाँ मन्दिर बजी है
    दीप जलते देहरी पर
    आरती थाली सजी है.....🙏

    सुन्दर सृजन।।।।।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका पुरुषोत्तम जी।
      सार्थक शब्दों से उत्साह वर्धन हुआ ।
      सादर।

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  5. बहुत सुंदर छटा बिखेरती मनमोहती कृति ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  6. बहुत सुन्दर ...
    प्राकृति की एक मजार खड़ा कर दिया आपकी रचना नें ...
    बहुत भावपूर्ण ...

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    1. बहुत बहुत आभार आपका नासवा जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर।

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