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Wednesday, 3 March 2021

किंशुक दहके


 विज्ञात योग छंद आधारित गीत।


किंशुक दहके ।


महके चंदन वन  

बंसत आया

लो सौरभ फैला 

सब को भाया।।


ऋतु हर्षित हर पल 

फैली आभा

पाया अनंत सुख 

बरसे शोभा   

भाव रखो मुखरित 

उत्तम काया ।।


रात ढ़ली काली 

पाखी चहके

जंगल में देखो 

किंशुक दहके 

आलस अब भागा 

मन इतराया।।


शंख ध्वनि गूंजी 

मंदिर जागे 

वट पर भक्तों ने 

बांधे धागे 

हर ओर खुशी है 

प्रभु की माया।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

32 comments:

  1. बसंत पर सुंदर पंक्तियाँ

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    1. जी सादर आभार आपका,प्रोत्साहन मिला।
      सादर।

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  2. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सादर।

      Delete
  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2057..."क्या रेड़ मारी है आपने शेर की।" ) पर गुरुवार 04 मार्च 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका पाँच लिंक पर रचना को लेने के ।लिए ।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  4. प्रकृति के सौंदर्य को निखारती सुन्दर कविता, मुग्ध करती है, नमन सह।

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    1. सक्रिय प्रतिपंक्तियों से रचना को सार्थकता मिली।
      बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  5. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

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  6. बहुत सुंदर सृजन दी।
    हिंदी साहित्य के प्रति आपका समर्पण सराहनीय है।
    बिंब मन में उतर जाते है।
    बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ।
    सादर

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    1. स्नेह से लबरेज आप की प्रतिक्रिया मेरे लेखन का पुरस्कार है प्रिय बहना।
      सस्नेह आभार।

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  7. बहुत सुंदर सृजन सखी 👌

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी।
      सस्नेह।

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  8. जंगल में देखो

    किंशुक दहके

    आलस अब भागा

    मन इतराया।।

    मनोहारी चित्रण !

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  9. प्रकृति के सौन्दर्य का अनुपम वर्णन आपकी रचनाओं मंत्रमुग्ध करता है । अप्रतिम सृजनात्मकता ।

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    1. बहुत बहुत सा आभार मीना जी आपकी स्नेह सिक्त टिप्पणी सदा मेरे लेखन में नव ऊर्जा भरता है ।
      सस्नेह।

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  10. बहुत सुंदर ,प्रकृति सौंदर्य से परिपूर्ण रचना ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      रचना पर सकारात्मक टिप्पणी रचना को प्रवाहमान करता है।
      सस्नेह।

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  11. प्रभु की माया... कहां कोई जान पाया

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      सही कहा आपने।
      सादर।

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  12. बसंत की सुंदरता देख आत्मविभोर मन झूमकर ईशभक्ति में तल्लीन है..सुंदर सार्थक सृजन..

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    1. रचना में निहित भावों पर गहन दृष्टि,रचना समर्थवान हुई
      बहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी।
      सस्नेह।

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  13. वासन्ती मौसम की सुन्दर अभिव्यक्ति।
    बढ़िया गीत।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई ।
      सादर।

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  14. वाह!खूबसूरत सृजन कुसुम जी ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका शुभा जी, स्नेहिल समर्थन मिला।
      सस्नेह।

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  15. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

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  16. रात ढ़ली काली

    पाखी चहके

    जंगल में देखो

    किंशुक दहके

    आलस अब भागा

    मन इतराया।।

    प्रकृति में किंशुक का दहकना , बासंती मौसम को पूर्णता मिल जाना है | बहुत सुंदर रचना कुसुम बहन | आपका लेखन छायावादी कवियों की याद दिलाता है |सस्नेह शुभकामनाएं

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  17. प्रकृति की खूबसूरती को दर्शाती हुई रचना, बहुत ही सुंदर

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