विज्ञात योग छंद आधारित गीत।
किंशुक दहके ।
महके चंदन वन
बंसत आया
लो सौरभ फैला
सब को भाया।।
ऋतु हर्षित हर पल
फैली आभा
पाया अनंत सुख
बरसे शोभा
भाव रखो मुखरित
उत्तम काया ।।
रात ढ़ली काली
पाखी चहके
जंगल में देखो
किंशुक दहके
आलस अब भागा
मन इतराया।।
शंख ध्वनि गूंजी
मंदिर जागे
वट पर भक्तों ने
बांधे धागे
हर ओर खुशी है
प्रभु की माया।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बसंत पर सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका,प्रोत्साहन मिला।
Deleteसादर।
बहुत ही सुन्दर 🌻👌
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सादर।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2057..."क्या रेड़ मारी है आपने शेर की।" ) पर गुरुवार 04 मार्च 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका पाँच लिंक पर रचना को लेने के ।लिए ।
Deleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
प्रकृति के सौंदर्य को निखारती सुन्दर कविता, मुग्ध करती है, नमन सह।
ReplyDeleteसक्रिय प्रतिपंक्तियों से रचना को सार्थकता मिली।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका।
सादर।
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteउत्साहवर्धन हुआ।
सादर।
बहुत सुंदर सृजन दी।
ReplyDeleteहिंदी साहित्य के प्रति आपका समर्पण सराहनीय है।
बिंब मन में उतर जाते है।
बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ।
सादर
स्नेह से लबरेज आप की प्रतिक्रिया मेरे लेखन का पुरस्कार है प्रिय बहना।
Deleteसस्नेह आभार।
बहुत सुंदर सृजन सखी 👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सखी।
Deleteसस्नेह।
जंगल में देखो
ReplyDeleteकिंशुक दहके
आलस अब भागा
मन इतराया।।
मनोहारी चित्रण !
जी बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह।
प्रकृति के सौन्दर्य का अनुपम वर्णन आपकी रचनाओं मंत्रमुग्ध करता है । अप्रतिम सृजनात्मकता ।
ReplyDeleteबहुत बहुत सा आभार मीना जी आपकी स्नेह सिक्त टिप्पणी सदा मेरे लेखन में नव ऊर्जा भरता है ।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर ,प्रकृति सौंदर्य से परिपूर्ण रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteरचना पर सकारात्मक टिप्पणी रचना को प्रवाहमान करता है।
सस्नेह।
प्रभु की माया... कहां कोई जान पाया
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसही कहा आपने।
सादर।
बसंत की सुंदरता देख आत्मविभोर मन झूमकर ईशभक्ति में तल्लीन है..सुंदर सार्थक सृजन..
ReplyDeleteरचना में निहित भावों पर गहन दृष्टि,रचना समर्थवान हुई
Deleteबहुत बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी।
सस्नेह।
वासन्ती मौसम की सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबढ़िया गीत।
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई ।
Deleteसादर।
वाह!खूबसूरत सृजन कुसुम जी ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शुभा जी, स्नेहिल समर्थन मिला।
Deleteसस्नेह।
अत्यंत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteउत्साहवर्धन हुआ।
सादर।
रात ढ़ली काली
ReplyDeleteपाखी चहके
जंगल में देखो
किंशुक दहके
आलस अब भागा
मन इतराया।।
प्रकृति में किंशुक का दहकना , बासंती मौसम को पूर्णता मिल जाना है | बहुत सुंदर रचना कुसुम बहन | आपका लेखन छायावादी कवियों की याद दिलाता है |सस्नेह शुभकामनाएं
प्रकृति की खूबसूरती को दर्शाती हुई रचना, बहुत ही सुंदर
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